वर्तमान नारी की झलक
वर्तमान नारी की झलक
सदियों से रुढ़ियों के पर्दो में ढ़क कर जिसे रखा,
आज वो समाज के इस पर्दे को हटाने आयी है,
डरी,सहमी ,नासमझ स्त्रियों के दिल का बोझ
वो आशा बनकर मिटाने आयी है,
अपनी ताकत से गांव ,शहर ही नहीं देश में भी जागरूकता लायी है,
आज नारियों के कार्यों के चर्चा से सबके चेहरे पर हरियाली छाई है,
हाँ है ये भी सत्य की पूरी तौर पर सुरक्षित नहीं है नारीयाँ,
पर वह हर राह पर इस जमाने को आजमाने आयी है,
कर कितना भी बुरा उनका , वह फिर भी अपने कोख में तुझे नौ महीने पालने आयी है,
लगा आग तू उनकी दुनियां में,वो दुल्हन बनकर तेरी दुनियां बसाने आयी है,
तेरे आँगन को बेटी रूपी पुष्प बनकर महकाने आयी है,
जिस हाथ से तू कर रहा दुष्कर्म,
उस हाथ को बहन बनकर राखी से सजाने आयी है,
दुःशासन बनकर फैला तू दहशत,
वो द्रोपदी बनकर तुझे थकाने आयी है,
जिसकी इज्जत, मर्यादा को कर रहा सरे आम नीलाम ,
वो तेरी कूल के मर्यादा को बचाने आयी है,
नारी से है नर न कि नर से नारी ,
समाज की इस भ्रम को आज मिटाने आयी है,
अपना हक तुझसे मांगने नहीं ,
बल्कि तुझे वह तेरा हक दिलाने आयी है।

कवयित्री : ज्योति राघव सिंह
वाराणसी (काशी) उत्तर प्रदेश, भारत
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