वफ़ा का मेरी आज कुछ तो सिला दो | Wafa par Ghazal
वफ़ा का मेरी आज कुछ तो सिला दो
( Wafa ki meri aaj kuch to sila do )
वफ़ा का मेरी आज कुछ तो सिला दो
मुझे छू के जानम मुकम्मल बना दो
हज़ारों दिये साथ मिलके जलेंगे
झलक एक अपनी अगर तुम दिखा दो
नहीं बात करते सनम आजकल तुम
हुई क्या ख़ता मेरी मुझको बता दो
मचलते बहुत है ये अरमान मेरे
नहीं दूर रह कर इन्हें तुम हवा दो
बनेगी ये महफ़िल तो जन्नत के जैसी
ग़ज़ल कोई अपनी अगर तुम सुना दो
फक़त मेरी चाहत यही एक दिलबर
चले आओ तुम और दूरी मिटा दो
तड़प इस कदर आज दिल में है अलका
मुहब्बत की रस्में सनम कुछ निभा दो
मेरठ (उत्तर प्रदेश )