वाह रे टमाटर | Wah re Tamatar
वाह रे टमाटर
( Wah re tamatar )
जब मैंने टमाटर से यह कहा
वाह रे टमाटर ,
वाह रे टमाटर ,
भाव तू ले गया
कितने अपने ऊपर!
तो सुनिए उसने क्या कहा..
ना हूं मैं कोई राजा
ना ही कोई वजीर हूँ,
मैं तो भाई टमाटर
सब्जी की तकदीर हूँ।
मैं सभी ग्रहणी की हरपल
पहली पसंद कहलाता हूँ,
सब्जी लाने की सूची में
प्रथम क्रम पर आता हूँ।
आलू गोभी प्याज के
संग में मुझे मिलाते हैं,
जिनमें भी मैं आ जाऊं
उनके जायके बढ़ जाते हैं।
बनाता कोई सब्जी मेरी
कोई ऐसे ही खाता है,
कोई सलाद के रूप में
मुझे प्लेट में सजाता है।
भाता हूं मैं बच्चों को
सबका खून बढ़ाता हूँ,
रोगी को निरोगी करके
स्वास्थ्य मैं लौटाता हूँ ।
कुछ तो नमक मिर्च लगा
चाव से मुझको खाते हैं,
कुछ ऐसे ही खड़े-खड़े
दो चार निगल जाते हैं।
सूप – केचअप – सॉस
कितने सारे मेरे रूप है,
हर बार काम आता हूँ
सर्दी- बारिश या धूप है।
बारिश में सूप पीने का
मजा ही अलग आता है,
बिन मेरे सॉस केचअप के
सैंडविच किसको भाता है।
मैं कभी महंगा ना था
ना महंगा कहलाऊंगा,
कम दामों में मिलने वाला
आसानी से हाथ में आऊंगा।
जो जमाखोरी करते हमारी
उन्हें सबक मैं सीखलाऊंगा,
अचानक से भाव में इतने
ज्यादा नीचे अब गिराऊंगा।
तब पता चलेगा उनको
किस्मत को वो कोसेंगे,
सब्ज़ी संग भ्रष्टाचार
करने की ना सोचेंगे!
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )