नहीं कभी वो हमारे क़रीब आये है
( Nahin kabhi jo hamare kareeb aaye hai )
जिन्हें समझा घर हमारे हबीब आये है
वहीं बनके घर हमारे रकीब आये है
निभाएंगे क्या मुहब्बत वहीं वफ़ा हमसे
हमें देने घर हमारे सलीब आये है
दुखाने दिल को हमेशा रहें आते ही वो
नहीं मुहब्बत के बनके तबीब आये है
नहीं लिखी है ख़ुदा ने नसीब में उल्फ़त
वफ़ा मुहब्बत से जमीं पर ग़रीब आये है
उमड़ते रहते हैं लेकिन निकल नहीं पाते
मेरी निगाह में आंसू अजीब आये है
यहाँ तो शोर शराबा हुआ ऐसा कल था
लगा है ऐसा कि जैसे अदीब आये है
मुहब्बत का फूल “आज़म” उसे देता कैसे
नहीं कभी वो हमारे क़रीब आये है