नर से धीर है नारी
नर से धीर है नारी

नारी

( Nari Kavita )

 

नर से धीर है नारी …

घर में दबी बेचारी ,
कभी बेटी कभी बहू बने ,
कभी सास बन खूब तने,
एक ही जीवन कितने रूप ,
धन्य भाग्य तुम्हारी

नर से धीर है नारी…

कभी यह घर अपना ,
कभी वह घर अपना
जिस घर जाए वहीं भाए सपना ,
वहीं लगन से मगन रहे
जीवन के भाग्य संवारी

नर से धीर है नारी…

भोर में सबसे पहले जागे ,
दौड़ी-दौड़ी काम पर भागे
घर में काम बाहर काम,
रात में देर से करें आराम
फिर भी कभी ना हारी

नर से धीर है नारी…

पति की सेवा पुत्र की सेवा,
साथ में सास ससुर की सेवा
सेवा में ही जीवन बीते ,
फिर भी रहे आभारी

नर से धीर है नारी…

जब भी होती कोई भूल ,
झटपट चले पति का शूल
सास ससुर ऊपर से डांटे ,
ननद भी देती गारी

नर से धीर है नारी …..

प्यार भरा है ममता भी है,
दुख सहने की क्षमता भी है
जो मांगो सो देती है ,
जैसे बड़ी व्यापारी

नर से धीर है नारी.…

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कवि : रुपेश कुमार यादव
लीलाधर पुर,औराई भदोही
( उत्तर प्रदेश।)

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