वतन की खुशबू | Watan ki khushboo
वतन की खुशबू!
( Watan ki khushboo )
मेरी हर साँस में रहती है वतन की खुशबू,
मुझे कितनी अजीज है इस चमन की खुशबू।
उतर के आ जाओ ऐ! आसमां में रहनेवालों,
रखी है बाँध के वो गंग-ओ-जमन की खुशबू।
यहाँ फजाओं में गूँजती हैं ऋषियों की सदाएँ,
वही ऋचाएँ बढ़ाती हैं इस चमन की खुशबू।
तख्त-ए-मौत पर भी जाकर बहादुर नहीं डरते,
ऐसे जांबाजों के आती है कफन से खुशबू।
गुलों की हिफाजत में भी खड़े रहते हैं काँटे,
उनके गुफ़्तगू से बढ़ती है चमन की खुशबू।
कई पर्वत,कई समन्दर बढ़ा नहीं सकते दूरीे,
मेरे हर खून के कतरे में है वतन की खुशबू।
राम ने मारा था रावण को एक जमाने में,
है जग के जेहन में लंका- दहन की खुशबू।
एटम-बम को ये मानव बना डाला खिलौना,
कृष्ण की बाँसुरी से आती है शान्ति की खुशबू।
वो साँसें कब की मरी जिन्हें वतन से प्यार नहीं,
जिन्दा है उस घास की रोटी के कण की खुशबू।
कौन भूलेगा अशफाक, उधमसिंह, आजाद को,
बढ़ा देती है हौसला वो रिवाल्वर की खुशबू।
!! जय हिन्द !!
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