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वतन
( Watan )
इश्क,आशिकी,महोब्बत , जुनूं ,
तुझसा ही वतन, वतन सा ही है तू….
कहाँ वो अमन, कहाँ मिले सुकूं
न सरहदों के इधर , न सरहदों से दूर….
आज़ाद हुये मगर गुलाम अभी तलक
बात मज़हबों की , इंसानियत से दूर….
खून तो खौलता है, बहता भी है खून
मगर लहू ही लहू की अहमियत से है दूर….
वतनपरस्ती पर तू चाहे लाख हो मजबूर
पर ऐ कलम,फिरकापरस्ती से रहना बहुत दूर….
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )