एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल | वो चाहता तो
वो चाहता तो
तसकीन उसके दिल को मिलती मुझे रुलाके
पूरी जो कर न पाऊं फरमाइशें बताके।
वो चाहता तो चाहे कब उसको है मनाही
दिक्कत वो चाहता है ले जाना दिल चुरा के।
मंजिल जुदा जुदा है जब उसकी और मेरी
तब दिल का हाल उसको क्या फायदा सुना के।
कहता है उंसियत में इज़हार है ज़रूरी
रूठा हुआ है मुझसे बच्चों सी ज़िद लगाके।
कुछ भी छिपाना उससे मुमकिन कहां रहा अब
हर राज़ जान लेता है वो नज़र मिलाके।
बिगड़ेंगे सब मरासिम दुश्वारियां बढ़ेंगी
देखो यकीं नहीं तो सच को जुबां पे लाके।
शह के मुसाहिबों से खुद को नयन बचाना
देते वो मात अक्सर दिल के करीब आके।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
तसकीन- संतुष्टि
उंसियत – मुहब्बत
मरासिम – संबंध
दुश्वारियां – मुश्किलें
शह- शतरंज की वो बिसात जिससे बादशाह को खतरा हो
मुसाहिब – बादशाह का खास व्यक्ति -पहुंच वाला
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