वो ख़ुद मुस्कुरा दी
वो ख़ुद मुस्कुरा दी
हिमाकत पे अपनी वो ख़ुद मुस्कुरा दी
किसी की ख़ता की किसी को सज़ा दी
मुझे हौसला जब नहीं हो रहा था
उसी ने इशारों से हिम्मत बढ़ा दी
मुझे फ़ैसला यूँ बदलना पड़ा था
शिकायत की उसने झड़ी सी लगा दी
मैं औरों से तरजीह दूँ क्यों न उसको
मेरी साईं क़िस्मत थी उसने जगा दी
फ़िदा उसकी बातों पे क्योंकर न होता
मुहब्बत को मेरी उसी ने हवा दी
वही उसका दीवाना होने लगा है
जिसे भी ग़ज़ल उसने मेरी सुना दी
गले से लगा लोगे मुझको ख़ुशी से
हक़ीक़त अगर मैंने अपनी बता दी
इसी बात से दिल परेशां बहुत है
न जाने मुझे उसने क्योंकर सदा दी
मैं करती हूँ साग़र से बेहद मुहब्बत
ख़बर उसने ख़ुद ही ये सब में उड़ा दी
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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