यादें

यादें | Kavita

यादें

( Yaaden )

जाती है तो जाने दों,यह कह नही पाया।
नयनों के बाँध तोड़ के, मैं रो नही पाया।
वर्षो गुजर गए मगर, तू याद है मुझको,
मै भूल गया तुमको, ये कह नही पाया।

 

दिल का गुबार निकला तो,शब्दों में जड दिया।
तुम जैसी थी इस दिल में तुझे,वैसा गढ़ दिया।
कुछ ने कहाँ की कल्पना, लगती है हकीकत,
हुंकार ने कुछ ऐसा लिखा, सबने पढ लिया।

 

पढते है तो पढ लेने दो, इनसे छुपाना क्या।
बेदर्द  है  ये  दुनिया  तो, आँसू बहना क्या।
ये ग़म में तो शामिल हुए, खुशियों के बहानें,
ये नफरतों का दौर है, इसमें मुस्कुराना क्या।

 

यादों पे किसका जोर है, जो इसको भुला दे।
ग़म हो या खुशी आँखों सें, आंसू को बहा दे।
वो  आते  नही  जो  जहाँ  को, छोड़ के जाते,
पर जब भी याद आते है, हुंकार को रूला दे

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

  ?

          शेर सिंह हुंकार जी की आवाज़ में ये कविता सुनने के लिए ऊपर के लिंक को क्लिक करे

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