दर्द की रेखा

( Dard ki rekha )

 

जुडा हो जिसका रिश्ता दर्द से
वही समझ सकता है किसी का दर्द
मिली हो वसीयत जिसे पुरखों की
उसे संस्कार भी मिला होना चाहिए

सभ्यता तो देन है शिक्षित ज्ञान की
व्यवहार भी देखकर सीख जाते हैं
संस्कार ही पहचान कराते हैं ज्ञान की
कपड़े की सफेदी से महानता नहीं होती

ज्ञान तो केवल भंडार है जानकारी का
ज्ञान जीवन में उतरे तो सार्थक है
पढ़कर वाद विवाद तो हो सकता है
किंतु संवाद के लिए विनम्रता चाहिए

दर्द ही देते हैं अनुभव ,मदद व सहयोग का
जीवन में जरूरतों के होते अभाव का
संपन्नता में एहसास ,महसूस नहीं होते
सिर्फ वैचारिक दयालुता ही बनी रहती है

बहुत कमों में होती है आदमीयत की भावना
शेष में तो केवल सम्मान की भूख होती है
दिखावे की हमदर्दी से जख्म ठीक नहीं होते
एक कसक सी चूमती है दर्द के रेखा की

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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