यादों की चुभन | Yaadon ki Chubhan
यादों की चुभन
( Yaadon ki Chubhan )
आज फिर तेरी यादों का समंदर उमड़ आया है,
हर लहर ने बस तेरा ही अक्स दिखाया है।
दिल जैसे टूटकर बिखर रहा हो अंदर-अंदर,
तेरे बिना इस मन ने हर पल ख़ुद को पराया पाया है।
हर आह में तेरा नाम ही सिसकता है,
आँसुओं में बसा तेरा चेहरा ही चमकता है।
रोते हुए दिल को यही सवाल सताता है,
क्यों तू दूर है, क्यों तू लौटकर नहीं आता है?
तेरी यादों ने आज फिर से घेर लिया है,
दिल ने फिर से तेरे लौटने का सपना संजोया है।
पर सच ये है कि तू है बहुत दूर,
और मेरे मन ने तेरी कमी में ख़ुद को मजबूर पाया है।
*की लौट आओ*, अब नहीं रहा जा रहा,
आज फिर तेरी यादों का समंदर उमड़ आया है,
हर लहर ने बस तेरा ही अक्स दिखाया है।
प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”