यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है
यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है
दिखाओ वह घटा काली कहाँ है
यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है
जुबाँ उसकी सुनों काली कहाँ है
दरख्तों की झुकी डाली कहाँ है
गुजारा किस तरह हो आदमी का
जमीं पर अब जगह खाली कहाँ है
जिसे हम चाहते दिल जान से अब
हमारी वो हँसी साली कहाँ है
मिलन अब हो गया शायद सजन से
बची अब होठ पर लाली कहाँ है
वफ़ा पर कल तुम्हारी जो फ़ना थी
बताओ आज घरवाली कहाँ है
निभाने यार से वादा गई थी
गिराई कान की बाली कहाँ है
मसल कर फेक देते सब सुमन को
खबर आती बता माली कहाँ है
बहन ही मानकर उसको शरण दी
नज़र उसपे बुरी डाली कहाँ है
जुबा मेरी न खुलवाओ यहाँ पर
खबर सबको कि हरियाली कहाँ है
प्रखर ने तो फ़कत की बात हँसकर
बता इसमें कोई गाली कहाँ है

महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
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