ये बहके बहके से कदम | Kavita ye Behke Behke se Kadam
ये बहके बहके से कदम
ये बहके बहके से कदम थाम लो तुम जरा।
लड़खड़ा ना जाए कहीं संभलना तुम जरा।
चकाचौध की दुनिया चमक दमक लुभाती।
भटक ना जाए तरुणाई चिंता यही सताती।
मधुर मधुर रसधारो में छल छद्मों का डेरा है।
डगर डगर पे चालाकियां अंधकार घनेरा है।
झूठा आकर्षण झूठे वादे केवल दिखावा है।
काल्पनिक स्वप्न महल बस एक छलावा है।
युवाओं को राह दिखा दो जीवन करो रोशन।
धीरज धर्म दया सीख पावन कर लो तन मन।
ये बहके बहके है कदम जरा रोको इनकी राहें।
संस्कारों का पतन है विपत्ति की तिरछी निगाहें।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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