महान कर्मयोगी: : योगेश्वर श्रीकृष्ण

श्री कृष्ण के नाम से कोई भी ऐसा भारतीय नहीं होगा जो उनसे परिचित न हो । उनका नाम अवतारी सत्ता के रूप में प्रमुखता के साथ लिया जाता है । जो व्यक्ति यह समझता है कि वह भगवान थे और उनके जीवन में कोई परेशानी नहीं होगी तो ऐसा नहीं है।

श्री कृष्ण का जीवन तो जन्म से लेकर अंतिम स्वांस तक जीवन के संघर्षों से गुजरा है। उनके जीवन के कष्टों की कल्पना करना भी मुश्किल है । परंतु वह कहीं भी जीवन के समर में हताश निराश नहीं दिखलाई देते हैं । बल्कि वह एक ऐसे कर्मयोगी महायोद्धा की बात दिखलाई देते हैं जो कि जीवन की हर परिस्थिति के प्रति अडिग खड़ा दिखलाई देता है।

कल्पना करिए जिसके जन्म के पूर्व ही उसके माता-पिता को जेल में डाल दिया गया हो । जन्म के बाद ही अघासुर, बकासुर, नरकासुर , कालिया नाग आदि से संघर्ष करना पड़ा हो । फिर भी कभी हताश-निराश निराश नहीं हुए बल्कि हर परिस्थित का डटकर मुकाबला किया । यही संघर्ष उन्हें महान से महानतम ही नहीं बल्कि ईश्वरी अवतार की श्रेणी में दर्ज कराता है।

स्वामी विवेकानंद जी श्री कृष्ण के बारे में कहते हैं — ” जहां तक मैं जानता हूं कि वह एक सुसामान्जस्य पूर्ण मस्तिष्क, हृदय और ज्ञान, भक्ति, कर्म में आश्चर्यजनक रूप से में विकसित व्यक्ति हैं। उनका प्रत्येक क्षण क्रियाशीलता से चाहे वह एक संभ्रांत जन की हों, अमात्य या किसी अन्य की हो, जीवंत हैं।

वे एक संभ्रांत पुरुष, एक विद्वान और एक कवि के रूप में महान है। परम आश्चर्य जनक हृदय उत्कृष्टतम भाषा- कहीं कुछ भी उसे पा नहीं सकता । व्यक्ति की प्रबल क्रियाशीलता यही धारणा अभी बनी हुई है ।

5000 वर्ष बीत चुके हैं परंतु कोटि-कोटि जन को प्रभावित किया है । जरा सोचो इस व्यक्ति का समग्र जन पर कितना प्रभाव हैं । भले ही तुम उससे अवगत हो या ना हो उनके प्रति मेरा सम्मान भाव ; उनकी पूर्ण प्रकृतिस्थता के कारण है। ”

सामान्य रूप से देखा जाए तो मनुष्य कर्म से भागना चाहता है वह चाहता है उसे कोई काम ना करना पड़े और बैठे-बैठे उसका पेट पलता रहे । यही कारण है कि करोड़ों की संख्या में भज – भज मंडली भगवान के नाम पर भीख मांगते दिखाई देती है।

भगवान श्री कृष्ण गीता में यही शिक्षा देते हैं कि-” प्रत्येक मनुष्य को कर्म करना ही पड़ेगा। केवल वही व्यक्ति कर्म से परे है जो संपूर्ण रूप से आत्म तृप्ति है। जिसे आत्मा के अतिरिक्त और कोई कामना नहीं है। जिसका मन आत्मा को छोड़ अन्यत्र कहीं भी गमन नहीं करता जिसके लिए आत्मा ही सर्वत्र है। शेष सभी व्यक्तियों को कर्म तो अवश्य करना पड़ेगा।।”

स्वामी विवेकानंद के अनुसार-” कर्मयोग का अर्थ है- मौत के मुंह में जाकर भी बिना तर्क वितर्क किए सब की सहायता करना ।भले तुम लाखों बार ठगें जाओ पर मुंह से एक बात ना निकालो और जो तुम भले कार्य कर रहे हो उनके संबंध में सोचो ही मत। निर्धन के प्रति किए गए उपकार पर गर्व मत करो और ना उससे कृतज्ञता की ही आशा करो ।बल्कि उल्टे तुम ही उसके कृतज्ञ होओ । यह सोच करके तुम्हें उसने दान देने का एक अवसर दिया है। ”

वर्तमान समय में संपूर्ण मानवता मानसिक रोग, तनाव , अवसाद , घृणा से घिरी हुई है। लोग अपने कर्म से भाग कर सफल होना चाहते हैं । श्री कृष्ण का मानवता के लिए महान उपकार यही है कि उन्होंने अपने स्वयं के जीवन से यह सिद्ध कर दिखाया की जीवन फूलों की सेज नहीं बल्कि संघर्षों की महान गाथा है । संघर्षों से जूझने के पश्चात ही जीवन का पुष्प खिलता है।

व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो श्रीकृष्ण जैसे महान योगी तपस्वी को भागवत कारों ने अपने निजी स्वार्थ के कारण माखन चोर, गोपियों के रास रचाने वाला ग्वालो के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध किया है। यही कारण है कि भागवत कथा ना हो करके अब नौटंकी बाजी ज्यादा होती है। जिसमें औरतें नौटंकी के नचनियों के तरीके ज्यादा नाचते हुए दिखलाई देती हैं।

वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व महान संकटों से घिरा हुआ है। भारत पर सबकी गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। ऐसे में यदि कथाकार श्री कृष्ण जैसे महान पुरुषों के सुदर्शन चक्रधारी स्वरूप का वर्णन सामान्य जन में कर सके तो भारत की समस्याएं सहज में दूर हो सकती हैं।

आजकल कृष्ण राधा या फिर पार्वती शिव का स्वांग बनाकर जहां देखो लोग वहीं पर नचा रहे हैं। यह एक प्रकार से हमारे महान पुरुषों का अपमान है जिस पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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