ज़ख़्म हुए नासूर | Zakhm Hue Nasoor
ज़ख़्म हुए नासूर
( zakhm hue nasoor )
बिखरी यादें टूटे सपने, क्या तुमको दे पाऊंगी।
ज़ख़्म मेरे नासूर हुए हैं, कैसे ग़ज़ल सुनाऊंगी।।
हक था तुम्हारा मेरे यौवन की, खिलती फुलवारी पर।
पर तुम माली बन न पाए, मैं पतझड़ बन जाऊंगी।।
ज़ख्म मेरे नासूर हुएं हैं कैसे ग़ज़ल सुनाऊंगी।
मेरी मुस्काने और खुशियां, ग़म के अंधेरे निगल गएं।
मीठे रसीले होंठ की मस्ती, तुम बिन किसे बताऊंगी।।
ज़ख्म मेरे नासूर हुए हैं, कैसे ग़ज़ल सुनाऊंगी।
तुमको चाहा तुमको पूजा, मौन समर्पण तुम्हें किया।
आंसू के ये मोती बोलो, किस के द्वारे सजाऊंगी।।
ज़ख़्म मेरे नासूर हुए हैं ,कैसे ग़ज़ल सुनाऊंगी।
बिखरी यादें टूटे सपने, क्या तुमको दे पाऊंगी
डॉ. प्रियंका सोनी “प्रीत”
जलगांव
यह भी पढ़ें :-