जमीन | Zameen kavita
जमीन
( Zameen )
जो जमीन से जुड़े रहे संस्कार उन्हीं में जिंदा है
देशद्रोही गद्दारों से हमारी भारत माता शर्मिंदा है
हरी भरी हरियाली धरती बहती मधुर बयार यहां
देशभक्ति दीप जले मन में जोशीले उद्गार जहां
यह जमी यह आसमा पर्वत नदियां लगे भावन
अविरल बहती गंगधारा बलखाती सरिता पावन
सोना उगले देश की धरती वीर वसुंधरा भारतमाता
हिमालय स्वाभिमान से शान से तिरंगा लहराता
जिस जमीं पर जन्म लिया रगों में रक्त का नाता है
जय जननी जय भारती सरहद पे सिपाही गाता है
वंदे मातरम वंदे मातरम गूंजे सभी फिजाओं में
सरजमी मर मिटने वाले संदेशा देते हवाओं में
जमीं अपनी आसमां अपना वतन अपना है प्यारा
होली दिवाली सब गले मिले बहे सद्भावों की धारा
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )