जिम्मेदार कौन | Zimmedar Kaun

एक मंदिर में साईं बाबा की मूर्ति स्थापित की जा रही थी। ढोल नगाड़े बज रहे थे। साईं बाबा की मूर्ति शंकर भगवान के बगल में स्थापित करना था। ऐसे में महेश नाम के एक स्थानीय व्यक्ति ने विरोध किया। उसने कहा,-” भोले शंकर की मंदिर में साईं बाबा की मूर्ति नहीं स्थापित हो सकती ।

हम किसी भी कीमत पर मंदिर को अपवित्र नहीं करने देंगे। साईं बाबा कोई भगवान नहीं है जो हमारे भोले शंकर के साथ उसकी मूर्ति की स्थापना हो।”

मंदिर के पुजारी ने उसे समझाने का प्रयास किया और कहां,-” तुम्हें साईं बाबा की मूर्ति से क्या परहेज है। इससे मंदिर में चढ़ावा ही तो बढ़ेगा। क्यों हमारे पेट पर लात मार रहे हो?”

यह सुनकर वह और भड़क गया। उसने कहा,-” पुजारी जी, थोड़ा सा विचार करो । हमारे इतने देवी देवता क्या काम है कि हम जबरदस्ती साईं बाबा की मूर्ति अपने मंदिरों में स्थापित करें। जिस देश में इतने देवी देवताओं हो उसमें साईं बाबा की मूर्ति मंदिरों में स्थापित करने से बड़ी कोई मूर्खता नहीं हो सकती हैं।”

यह सुनकर पुजारी कहने लगा ,-” बात तो तुम ठीक कह रहे हो लेकिन यहां रोजी-रोटी का सवाल है । आजकल साईं के भक्त ज्यादा बढ़ गए हैं यदि साईं की मूर्ति स्थापित कर देते हैं तो चढ़ावा ज्यादा बढ़ जाएगा ।”

उसने कहा कि,-” लेकिन आज जिस भी मंदिर में देखो वहीं पर भगवान के साथ साईं बाबा की मूर्ति स्थापित करवा दिया। जो व्यक्ति जीवन भर मस्जिद में रहा।।

हिंदुओं को धोखे से मुसलमान बनाता रहा उसको तुम भोले शंकर के साथ मंदिर में बैठाकर के जनता से पूजा करवा कर क्या सिद्ध करना चाहते हों। यदि तुम्हें हिंदुओं से थोड़ी भी प्रेम हो तो किसी भी कीमत पर साईं बाबा की मूर्ति भोले बाबा के साथ स्थापित न होने दो।”

इस प्रकार से विवाद बढ़ता ही जा रहा था। कोई पीछे नहीं हटना चाहता था। मंदिर कमेटी भी दान दक्षिणा के स्वार्थ के कारण मंदिर में साईं बाबा की मूर्ति स्थापित करने के लिए तुली हुई थी। वह तर्क पर तर्क दिए जा रहे थे लेकिन कोई ऐसा तर्क नहीं था जो यह सिद्ध कर सके की मंदिर में साईं बाबा की मूर्ति स्थापित करना उचित है। भीड़ का एक बहुत बड़ा हिस्सा अब उसकी तरफ से भी बोलने लगा था जिसके कारण उसका मनोबल और बढ़ गया।

उसके तर्कों के आगे सभी के मुंह बंद हो गए। वास्तव में देखा जाए तो भारत के कोई भी मंदिर नहीं होगा जहां पर पुजारी एवं प्रबंधन मंदिर कमेटी की मिली भगत से साईं बाबा की मूर्ति स्थापित कर मंदिर को कलंकित न किया हो। दान दक्षिणा के चक्कर में सारे मंदिरों को साईं बाबा की मूर्तियों से पाट दिया गया है।

हिंदू समाज बड़ा अभागा है। यही कारण है कि साईं बाबा को अपने मंदिरों में स्थापित करके अपने मंदिर को अपवित्र कर दिया। इसमें केवल अनपढ़ ही नहीं बल्कि पढ़े लिखे भी और अंधे बने हुए हैं। दान दक्षिणा के लालच में धर्म को भ्रष्ट करते जा रहे हैं।

साइन बाबा की मूर्ति स्थापित करना एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है जिससे कि हिंदुओं में आत्मगलानी पैदा की जा सके। उन्हें यह आभास दिलाना कि तुम्हारे 33 कोटी देवी देवता किसी काम के नहीं है। जब तक कि तुम साईं बाबा की पूजा ना करो।

इसी प्रकार के हिंदुओं की मजार पूजा का भी है। उत्तर प्रदेश का एक बहुत बड़ा हिंदू समाज मजार पूजक बन गया है और वह अपने धर्म से भ्रष्ट हो चुका है। गाजी मियां की पूजा करना हिंदुओं के मानसिक गुलामी का प्रतीक है। उन्हें आभास दिलाता रहता है कि अभी भी हम भले ही स्वतंत्र हो गए हैं लेकिन मानसिक रूप से गुलाम आज भी है।

इसके साथ ही एक बहुत बड़ा कारण आस्था का डगमगाना भी है। जो भी हिंदू किसी भी प्रकार से साईं बाबा या किसी मजार पर पूजा करने जाता है तो उसके घर में एक प्रकार से नकारात्मक ऊर्जा पैदा हो जाती है जिसके कारण वह जीवन भर भूत प्रेत डायन साइन के चक्कर में फंसा रहता है और कभी जीवन में निकल नहीं पाता है।

आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? कोई मुसलमान तो नहीं आता साईं बाबा की मूर्ति मंदिर में स्थापित कराने के लिए। या फिर मजार दरगाह पर चादर चढ़ाने के लिए। हिंदुओं का यह जाहिलपना ही है की भारत के सभी मंदिर साईं बाबा की मूर्ति के साथ अपवित्र हो चुके हैं। जब मंदिर बन गए हैं तो लोगों ने साईं बाबा की मूर्ति अपने घर के मंदिरों में भी स्थापित कर लिया है।

साईं बाबा की करामातों पर बहुत सी किताबें भी उपलब्ध है तथा उन पर फिल्म भी बन चुकी है। हिंदुओं की मूर्खता ही है कि भारत में साईं ट्रस्ट को सबसे ज्यादा चढ़ावा चढ़ता है।

हिंदू समाज को चाहिए कि वह किसी भी मंदिर में या अपने घर के मंदिर में साईं बाबा की मूर्ति को हटा दे। साथ ही भूल से भी किसी मजार पर नहीं जाएं। मंदिर की पवित्रता को बनाए रखें। पुजारी द्वारा बहकाए गए दान दक्षिणा का मोह छोड़ दे। कोई भी हिंदू समाज का व्यक्ति भूल कर भी साईं बाबा की मूर्ति अपने घर में ना रखें।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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