ज़िंदगी खुल के जियो | Zindagi Khul ke Jiyo
ज़िंदगी खुल के जियो
( Zindagi Khul ke Jiyo )
ज़िंदगी खुल के जियो बस ये भरोसा करके
एक दिन मौत बुला लेगी इशारा करके
कौन ऋण इनका चुका पाया है इस दुनिया में
अपने माँ बाप को छोड़ो न किनारा करके
आपकी दीद को हर रोज तड़पते हैं हम
थक गए चाँद का हर रात नज़ारा कर के
रोशनी ग़ैर के घर में हो, गवारा न सही
क्या मिला अपने ही घर में यूँ अँधेरा करके
हौसला रख! तेरे दिन ग़म के ये ढल जाएँगे
क्या मिलेगा भला यूँ शोर-शराबा कर के
डूब जाओ कि यही तो है इबादत रब की
क्या मिलेगा यूँ मुहब्बत से किनारा कर के
कैसी यादें हैं तुम्हारी ये बता दो मुझको
रोज़ जाती हैं मेरी चश्म को खारा करके
नाज़ नख़रों से भले पालिये बेटी लेकिन
करना पड़ता है विदा पाँव पखारा करके
वक़्त के कितने सितम और गिनाएँ मीना
रख दिया इसने समंदर को भी प्यासा करके
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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