अपनों ने मुझको रुलाया बहुत है

( Apno ne mujhko rulaya bahut hai )

 

वफ़ा से ही रिश्ता निभाया बहुत है
किसी को यूं अपना बनाया बहुत है

जो तकलीफ दिल को बहुत हो रही अब
किसी से यहाँ दिल लगाया बहुत है

वही मेरे ऊपर हंसा है यहाँ तो
जिसे हाल दिल का सुनाया बहुत है

न माना मगर वो मेरी बात को ही
उसी का ही नखरा उठाया बहुत है

बना आज मेरा अदू वो यहाँ तो
गले से जिसे तो लगाया बहुत है

ख़ुशी तो मिली है न करके वफ़ा भी
यहाँ ग़म वफ़ा में कमाया बहुत है

मैं गिरकर संभलता रहा हूं हमेशा
ज़माने ने मुझको गिराया बहुत है

नहीं है गिला कुछ परायों से आज़म
कि अपनों ने मुझको रुलाया बहुत है

 

शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )

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