ज़ुल्मत से ये रूह डर रहा है
ज़ुल्मत से ये रूह डर रहा है

ज़ुल्मत से ये रूह डर रहा है

( Zulamt se ye rooh dar raha hai )

 

❄️

ज़ुल्मत से ये रूह डर रहा है

ख्वाब मेरे शौक़ से उतर रहा है

❄️

वही नदिना जी रहा है मुझमें

जो मुझे हर रोज मार रहा है

❄️

नचाहते हुए तुझे मैंने चाहा है

मेरी चाहत मुझसे ये हट कर रहा है

❄️

ख्याल-ए-सफर के चौखट पे

हर रोज इंसान मर रहा है

❄️

मुहब्बत के बुलंद को आवाज़ दे

सदा से उसका तुझपे नज़र रहा है

❄️

में बिखर रहा हूँ या सवर रहा हूँ

ये बात अब तक असरार रहा है

❄️

बिखर ही जाने दे तू खुदको ‘अनंत’

इन्तिज़ार की क़रार अगर रहा है

 

✒️

शायर: स्वामी ध्यान अनंता

 

यह भी पढ़ें :-

सूरज के क़ज़ा होते ही | Suraj ke qaza hote hi | Ghazal

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here