
किस अंदाज़ से मुख्तलिफ थे तुम हमसे
( Kis andaaz se mukhtaliph the tum humse )
राह भटक ही जाए साहिल ऐसी तो ना थी
ढूंढ़ने से ना मिले मंजिल ऐसी तो ना थी
किस अंदाज़ से मुख्तलिफ थे तुम हमसे
पेहले तुम भी कामिल ऐसी तो ना थी
उदासी है कैसे और ये कहाँ से आया है
ये ज़ीस्त वर्ना मुश्किल ऐसी तो ना थी
मुसलसल तबियत बिगड़ा चला जा रहा है
कभी हाल हमारी माइल ऐसी तो ना थी
रूठ लिया खुद से, अब मनाएगा तुझे कौन
नाराज़ हमारी हाल-ए-दिल ऐसी तो ना थी
कुछ तख़्लीक़ी थी, कुछ हुनर था मगर
‘अनंत’ तुम्हारे छोड़े महफ़िल ऐसी तो ना थी
शायर: स्वामी ध्यान अनंता
यह भी पढ़ें :-
ज़ुल्मत से ये रूह डर रहा है | Zulamt se ye rooh dar raha hai | Ghazal