सरहद की जिंदगी | Kavita sarhad ki zindagi
सरहद की जिंदगी
( Sarhad ki zindagi )
सीमा पे जांबाज सिपाही बारूद से बतियाते हैं।
आंधी तूफानों में चलते जा शत्रु से भिड़ जाते हैं।
हिमालय सा रख हौसला पराक्रम दिखला देते।
सरहद के रखवाले जो बैरी के छक्के छुड़ा देते।
समर के महा सेनानी रण में जौहर दिखलाते।
रणयोद्धा संग्राम लड़ रण में सदा विजय पाते।
गोला बारूद बंदूकों से तैनात समर में जाते हैं।
मां भारती शीश चढ़ा शूरवीर अमर हो जाते हैं।
हिमखंडों पे जाकर लड़ते पर्वतों शिला को चीर।
जल थल नभ सेनाएं चले सरहद के प्रहरी वीर।
नदी नाले वनों से होकर सजग प्रहरी निकलते हैं।
हौसलों की उड़ान भरते सीना तानकर चलते हैं।
अंगारों में ओज बने वीर तलवारों का दम भरते।
भारत भाग्यविधाता जन बढ़कर वीर पीर हरते।
अनावृष्टि अतिवृष्टि में राहत सबको पहुंचाते हैं।
सच्चे कर्मवीर भारत के माटी का फर्ज निभाते हैं।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )