मन का विश्वास | Kavita man ka vishwas
मन का विश्वास
( Man ka vishwas )
बवाल बड़ा होता बोले तो हंगामा खडा हो जाता
सहता रहा दर्द ए दिल को कब वक्त बदल जाता
वो मुश्किलें आंधियां रोकना चाहे मेरे होसलो को
अल मस्त रहा मै सदा खुद को बुलंदियों पे पाता
अड़चनो को रास ना आया राहों पे मेरा चल देना
मंजिलें मिल गई मुझे जाकर कोई उन्हें समझाता
दूर से देखते ही रहे वो दर्शक बन मेरे सफर को
मेरे मन का विश्वास ही मेरा हौसला सदा बढ़ाता
झुक ना सका कभी ना सीखा मैंने कभी झुकना
विनम्रता से प्यार भरी मुस्कानों को जब मैं पाता
स्वाभिमान संस्कारों में विनय भाव स्वभाव रहा
आचरणों में सादगी को जीवन में अपनाता रहा
हौसलो भरी उड़ानों को कब कोई रोक पाया है
लक्ष्य जिसने साधा है मंजिलों तक पहुंच जाता
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )