दिव्य भूमि | Kavita divya bhumi
1.दिव्य भूमि
दिव्य भूमि साकेत जहाँ पर, राम ने जन्म लिया था।
कलयुग में वो भाग्य पे अपने, जार जार रोया था।
सृष्टि के साथ ही उदित हुआ,उस नगर का नाम था काशी।
नराधमों ने काशी की महिमा को बना दिया दासी।
नाम बदल दी धर्म बदल दी, इतिहास मिटा दी सारी।
पृथ्वी को संकीर्ण किया, भारत ही बदल दी सारी।
फिर भी वैभव मिटा नही, सौभाग्य पुरातन पाएगा।
सजधज करके राष्ट्र देव जब, फिर से वापस आएगा।
2. शिव की नगरी काशी
धरा पर एक ही नगरी हैं जो, शिव को प्यारी हैं।
अलौकिक हैं वो पावन, शिव की नगरी काशी है।
कहाँ था छोड़ के ना जाऊगां, चाहे कुछ भी हो,
अभी भी वही पे है शिव शम्भू,जहाँ ज्ञानवापी हैं।
3. तीव्र वेदना
आकुल मन की तीव्र वेदना, मन से निकल न पाए।
अश्रु शिला से नयन में जम गए,छलक निकल न पाए।
व्यथा हमारी कथा सरीखे, सुने जिसे भी सुनाए,
पर इस मन की पीड बुझी ना, तड़पन कम हो पाए।
4. जन्म की पीड़
जन्म की पीड़ मिटी ना प्यास बुझी, इस नश्वर तन से।
अभी भी लिपटा है मन मेरा, मोह में मोक्ष को तज के।
बार बार जन्मा धरती पर, तृष्णा में लिपटी है काया।
उतना ही उलझा हैं उसमें, जितना ही चाहे हैं माया।
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कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )