दुनिया आबाद रहे | Poem Duniya Aabad Rahe
दुनिया आबाद रहे
( Duniya aabad rahe )
इंसानों में चरमपंथी यहाँ भी हैं वहाँ भी,
फ़रिश्ते यहाँ भी हैं और वहाँ भी।
जीडीपी बढ़ रही इस मुल्क की बड़ी तेजी से,
हुकूमत करनेवाले यहाँ भी हैं वहाँ भी।
दुनिया आबाद रहे ऐसी है हमारी सोच,
ज्ञान बाँटनेवाले यहाँ भी हैं और वहाँ भी।
रोटी-दाल के लिए वो तरस रहीं अनगिनत साँसें,
वही है सबका मालिक यहाँ भी वहाँ भी।
हथियार नहीं दे पाया सुकूँ कभी भी इंशा को,
मरने के बाद दो गज कफ़न यहाँ भी वहाँ भी।
इंशा की इच्छाओं का कोई अंत नहीं,
चाहिए दो गज जमीं यहाँ भी,वहाँ भी।
बबूल बोकर कोई आम नहीं पा सका,
आम का बागान लगानेवाले यहाँ भी वहाँ भी।
बेगुनाहों का लहू बहाना कत्तई ठीक नहीं,
फातिहा पढ़नेवाले यहाँ भी हैं वहाँ भी।
लफ्ज़ ऐसी बोलो कि मुँह से फूल झरे,
रहे चहल -पहल यहाँ भी और वहाँ भी।
चबा-चबा के वो खा गए अपना ही देश,
ऐसे घाव से लोग आहत हैं यहाँ भी वहाँ भी।
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