लक्ष्य | Hindi poem on Lakshya
लक्ष्य
( Lakshya )
हर मानव का सपना होता,
आगे तक बढ़ता जाऊं।
लक्ष्य धार चलूं प्रगति पथ पर
निश्चय मंजिल को पाऊं।।
बचपन में कुछ भान नहीं था,
खेलकूद में समय गया।
योग्य बनूंगा पढ़ लिखकर के,
भरी जवानी मोद भया।
मात-पिता की हुई दया तब,
नव जीवन पा हरषाऊं।
लक्ष्य धार चलूं प्रगति पथ पर,
निश्चय मंजिल को पाऊं।।
सुंदर घर हो सबकी आशा,
कोठी गाड़ी धन माया ।
सारे सुख मेरी झोली में,
नशा अजब मन में छाया ।
सपने अर्जित लक्ष्य बनाया,
पाकर उनको इतराऊं।
लक्ष्य धार चलूं प्रगति पथ पर,
निश्चय मंजिल को पाऊं।।
जैसे पंछी उड़ते नभ में,
अंत छोर तक जाने को।
प्रेरक बन कर हमें सिखाते,
जगा जोश कुछ पाने को।
राह मिलेगी अनजाने को,
पर मन में ना घबराऊं।
लक्ष्य धार चलूं प्रगति पथ पर,
निश्चय मंजिल को पाऊं।।
मिले सफलता खुशियां सबको,
कंटक पथ से नहीं डरे।
पांव टिके हो इसी धरा पर,
पर सेवा उपकार करें।
भाव भरें जांगिड़ में इतना,
अच्छा मानव कहलाऊं।
लक्ष्य धार चलूं प्रगति पथ पर,
निश्चय मंजिल को पाऊं।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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