Geet Khali Haath

खाली हाथ रह जाता हूं | Geet Khali Haath

खाली हाथ रह जाता हूं

( Khaali haath rah jata hoon)

 

खूब बांटता प्यार भरे मोती, पल पल मैं मुस्काता हूं।
रिश्तो की डगर चलते-चलते, खाली हाथ रह जाता हूं।
खाली हाथ रह जाता हूं

अपनापन अनमोल लुटाता, मोती चुन चुन भाव भरे।
रिश्तो में मधुरता घोले, मीठे शब्द बोलता खरे खरे।
दर्द समझ लेता सबके, जहां भी मैं चला जाता हूं।
हवन करते हाथ जलते, गिला शिकवा ही पाता हूं।
खाली हाथ रह जाता हूं

लगन मेहनत अपनाई सदा, ईमानदारी ही गहना मेरा।
सच्चाई की डगर सुहानी, सत्य प्रेम अटल रहना मेरा।
हौसलों की उड़ान चलूं, कभी अन्याय नहीं सह पाता हूं।
अपनी मेहनत की खाता, जाने क्यों खटक जाता हूं
खाली हाथ रह जाता हूं

दुश्चक्रों के जाल चल रहे, कितने मायाजाल मच रहे।
आंधी तूफां बाधाओं से, अब चतुराई से मान बच रहे।
संभल संभल चलके भी, अपनों से ठोकर खाता हूं।
मैं शब्दों की हाला पी, मतवाले गीत सुहाने गाता हूं।
खाली हाथ रह जाता हूं

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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