Geet Jab Jatharagni Bolti hai

जब जठराग्नि बोलती है | Geet Jab Jatharagni Bolti hai

जब जठराग्नि बोलती है

(Jab jatharagni bolti hai )

धरने प्रदर्शन होती हड़तालें सारी कुर्सियां डोलती है
टूट जाता है बांध सब्र का जब जठराग्नि बोलती है

जन जन जब लाचार होता कोई नहीं सहारा होता
भुखमरी का मारा होता सबने किया किनारा होता
वर्षों तक ना बोल सके वो बात जुबानें बोलती है
झूठे वादे प्रलोभन की जब गांठे सारी खोलती है
जब जठराग्नि बोलती है

रोने लगता जब नन्हा बालक तो माता दूध पिलाती है
अभावों में जीने वालों की रोटी हाथों से छिन जाती है
तूफानों को झेल झेलकर हवाएं भी मुंह खोलती है
सच के तराजू में रखकर जब कलम पूरा तोलती है
जब जठराग्नि बोलती है

हिल जाते दिग्गज सारे सिंहासन हो जाता डांवाडोल
उतर जाता सैलाब बनकर बुलंद हौसले मुखर बोल
दो जून की रोटी सबके मन में अमृतधारा घोलती है
जाग उठती जनता सारी आंखें सत्ता की खोलती है
जब जठराग्नि बोलती है

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

कोई ऐसी गजल लिखूं | Poem Koi aisi Ghazal likhoon

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *