ढूंढ़ता हूँ रोज़ ऐसी दोस्ती मैं
( Dhoondhta hoon aisi dosti mein )
थक गया हूँ ढूंढ़ता ही ख़ुशी मैं!
जी रहा हूँ ग़म भरी सी जिंदगी मैं
दें हमेशा जो वफ़ा की मुझको ख़ुशबू
ढूंढ़ता हूँ रोज़ ऐसी दोस्ती मैं
नफ़रतों के दर्द ग़म इतनें मिले है
हाँ भुला अपनें लबों की हंसी मैं
प्यार के मंजर मिले मुझको नहीं है
जीस्त में सहता गया हूँ बेरुखी मैं
छोड़ दें शायद दिल से नाराज़गी वो
लिख रहा हूँ नाम उसके शाइरी मैं
बेदिली से आज़म को ठुकरा दिया है
कर गया हूँ जिस हंसी से आशिक़ी मैं