Baje Tab Mere Man ke taar

बजे तब मेरे मन के तार | Baje Tab Mere Man ke taar

बजे तब मेरे मन के तार

( Baje tab mere man ke taar )  

 

सावन की चली मस्त बहार, रिमझिम आने लगी फुहार।
अधर हुई गीतों की बौछार, बजे तब मेरे मन के तार।
बजे तब मेरे मन के तार

जब कुदरत ने किया श्रंगार, बजी तब मधुबन में झंकार।
शिवमय सावन हुआ सार, भक्तों की उमड़ पड़ी रसधार।
चली यूं शीतल मंद बयार, बरसता सावन मूसलाधार।
धरा ने चूनर लीनी धार, सरिता चली सिंधु के पार।
बजे तब मेरे मन के तार

वृक्ष लताएं लगे झूमने, उपवन सारा हरसाया।
पुष्प वृंद भांति-भांति के मन का आंगन महकाया।
सर कूप तालाब भरे सब, सावन की बरसे बौछार।
मन मयूरा झूम के नाचे, छेड़ रहा संगीत सितार।
बजे तब मेरे मन के तार

 

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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