आशा झा की कविताएं | Asha Jha Poetry

राखी पर मौलिक

( गीत )
बहना घर आई मुस्काती गाती
देखो आई आईआई आई आई राखी
उत्साह उमंग में कमी न रखती
जाऊंगी भइया घर सबसे कहती
राखी मिठाई लेने बाजार जाती
देखो आई आईआई आई आई राखी
बहना कहे भइया संग न छोड़ना
वादा किया जो मुझसे न तोड़ना
भाई को याद दिलाती जाती
देखो आई आई आई आई आई राखी ।
दीर्घायु हो भइया बहन मनाती
भाई की पसंद का भोजन बनाती
भाई को खिलाती फिर खाती
देखो आईआई आईआई आई राखी
भाई के प्रेम में बहती जाती
खुद हँसती भइया को हँसाती
भाई के लिये उपहार लाती
देखो आई आईआई आई आई राखी
कुछ बहने मइया बन जाती
भाई का अपने संसार बसाती
खुद चाहे अपने घर सुख न पाती
देखो आई आईआई आई आई राखी
देश की सेवा में काम करें जो
देश का ऊँचा नाम करे जो
उसकी बहन गर्व से भर जाती
देखो आई आईआई आईआई राखी ।
योग्य बहन भाई का हाथ पकड़ती
जीवन पथ पर साथ ले चलती
सारी बाधाओ से पार लाती
देखो आईआई आईआई आई राखी

दोस्ती

शर्त की गोद में न पले दोस्ती
उम्र ढल जाये पर न ढले दोस्ती
दुख की धूप में सुख की छांव में
साये की तरह संग चले दोस्ती ।
प्रलोभन उसे चाहे जितने मिले
भूलकर भी कभी न छले दोस्ती ।
दोस्त का नाम लेकर छले गर कोई
दुश्मनों से भी मिलती गले दोस्ती ।
आंधी अफवाहो की चाहे जितनी चले
आस्था की जड़ो पर पले दोस्ती ।
दोस्त की उन्नति उसको अपनी लगे
द्धेष की अग्नि में न जले दोस्ती ।
स्वार्थ को दोस्ती में जगह न मिले
हाथ भूले से भी न मले दोस्ती ।
दोस्ती हो अगर पृथ्वी चंदर सी हो
दुश्मनो की नजर में खले दोस्ती ।
शर्त की गोद में न पले दोस्ती
उम्र ढल जाये पर न ढले दोस्ती ।

काशी मथुरा न जाऊं मै जाना चाहूं कारगिल

काशी मथुरा न जाऊं मै जाना चाहूं कारगिल
सभी धर्मो के लोग जहां युद्ध करते मिलजुल
जहाँ न कोई हिंदू मुस्लिम न सिख न मराठा है
सब सैनिक सभी सपूत भारत जिनकी माता है
अलग अलग भाषा के गीत एक राग में गाते है
एक जगह का पानी पीते एक सा खाना खाते है
रूप रंग हो अलग अलग पर मिले हुए है दिल
काशी मथुरा न जाऊं मै जाना चाहूं कारगिल
अलग अलग शस्त्र सभी के पर लक्ष्य सभी का एक है
जान लेते जान देते फिर भी इरादा नेक है
युद्ध न चाहे फिर भी होना पड़ता खेत है
आजादी के फूल खिले जब मिट्टी में मिलती रेत है
वीर जवानो के नारो से धरती जाती हिल
काशी मथुरा न जाऊ मै जाना चाहूं कारगि

योग दिवस पर

भोग की बातें करो योग की तुम न करो
चाहते जीवन सुखी ।
भोर में उठके तुम अनुलोम विलोम करो
सूर्य नमस्कार कर ऊँ उच्चारण करो ।
करो कपाल भारती फिर करो तुम भ्रामरी
हो जायेगा जीवन सुखी ।
चाहो गर तुम योग शिक्षा आय का साधन बने ।
चाहो गर तुम योग शिक्षा उपकार का साधन बने ।
आगे कदम बढ़ाओ तुम साथ योग ले आओ तुम
हो जायेगा जीवन सुखी ।
योग ऋषि मुनियों का जादू प्राचीन काल से मानते ।
सबसे बड़े योगी शिव हम सभी यह जानते
माया जब भी ओट बदले पाप चमके अगले पिछले हो जायेगा जीवन सुखी ।

पिता

पिता का सिर पर हाथ रहता
फिर नही वह जग से डरता
निर्भीक जीवन जीता है ।
बचपन में बच्चा सोचता मेरे पिता सबसे बड़े
कोई न कुछ कर सके जब सामने पिता खड़े
विश्वास आँखो मे चमकता चेहरा भी उसका दमकता निर्भीक जीवन जीता है
युवा हो पिता की परछाई बन कर चलता है
दिखता पिता सा पिता सा कर्म करता है
छाती चौड़ी करके चलता उगता सदा कभी न ढलता
निर्भीक जीवन जीता है
बुढ़ापे में पिता की वह लाठी बनकर जीता है
पिता को खिला पिलाकर खुद खाता पीता है
नक्शे कदम पर पिता के चलता स्नेह के झूले मे पलता
निर्भीक जीवन जीता है ।

लड़कियां

बढ़ती उम्र लड़कियों में परिवर्तन लाती
गिरती लड़खड़ाती फिर सम्हल जाती
संस्कार भरे हो जिसमें कूट कूटकर
माँ से सब कह दे जो फूट फूट कर
लुटेरो की पहचान आसान हो जाती
पर तारीफो के पुल उसे घमंडी बनाते
तलवार की धार पर उसको चलाते
गर वह स्वयं को आइना दिखाती
अंजान से कभी न जो दोस्ती बढ़ाती
उसकी राह में कभी भी न बाधायें आती
सच कहने की आदत जो लड़की अपनाती
यही आदत उसे विपत्तियों से बचाती
सच्चा दोस्त कभी भी गलत बात न सिखाता
माँ बाप से झूठ बोलने की राह न दिखाता
कसौटी पर परखने से सच्चाई नजर आती
परखकर जो लड़की हाथ आगे बढ़ाती
खुद को प्रेममंजिल की सीढ़ी चढ़ाती
कभी भी नहीं वह जीवन में पछताती

धैर्य का प्रतिफल

गुणो को निखारने में धैर्य की अहम भूमिका
धैर्य के बिना सुंदर चित्र न दे सके तूलिका
जब धैर्य से गुण का मिलन होगा
तभी हमें धैर्य का प्रतिफल मिलेगा ।
मिट्टी का गड्ढा खोदकर बीज बो दो
जल देकर उसे समय पर छोड़ दो
बीज से पौधा पौधे से फूल फल बनेगा
तभी हमें धैर्य का प्रतिफल मिलेगा
जन्म बचपन अल्हड़पन जवानी
बुढ़ापा के बाद मिलते अंतर्यामी
ईश्वर से जिस दिन मिलन होगा
उसी दिन धैर्य का प्रतिफल मिलेगा ।
बालवाड़ी विद्यालय विश्वविद्यालय में पढ़ेगा
विषयों में पारंगत हो नये कीर्तिमान गढ़ेगा
तभी उसे धैर्य का प्रतिफल मिलेगा ।
कला कोई भी मांगती रियाज है
साहित्य में शब्दों से खेलना रिवाज है
धर्म में भी धैर्य से जो रत रहेगा
उसे ही धैर्य का प्रतिफल मिलेगा
बहुत सी समस्यायें दूर नही होती प्रयत्न से
स्वतः ही दूर हो जाती समस्यायें समय से
धैर्य रखकर जो समय का इंतजार करेगा
उसे ही धैर्य का प्रतिफल मिलेगा ।

गौतम बुद्ध

बुद्ध पूर्णिमा के दिन जन्में बद्धपूर्णिमा के दिन पाया ज्ञान
बुद्धपूर्णिमा के दिन ही हुआ जिनका महापरिनिर्वाण
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते है ।
अक्रोध से क्रोध को भलाई से दुष्ट को
दान से कंजूस को सच से झूठ को
जीतना सिखाता जो
उसे ही हम गौतमबुद्ध कहते है ।
मुक्ति का कारण न करना इच्छाये
दुख का कारण इच्छायें बतायें ।
अनुभव को साक्षात प्रमाण माने
आत्मजयी को जग में विजेता माने ।
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते हें ।
इच्छा मोह राग द्धेष सबसे बड़े दोष
सुखमय होता संतोष .का आगोश ।
बताता हमें जो
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते हैं ।
मनुष्य को जीना चाहिये
होकर समाधिमान व शीलवान । .
मनुष्य को जीना चाहिये
होकर उदयमी व प्रज्ञावान ।
निष्ठा से जो धर्म करना सिखाता हो
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते है ।
सिर्फ अपने लिये जीकर कुछ नहीं रखा
नीरस मोक्ष प्राप्त करने में ।
आनंद का अनुभव करोड़
दूसरो को दुख से छुड़ाने में ।
जिनके विचार शक्ति और उर्जा देते हैं
उसे ही हम गौतम बुद्ध कहते है ।

मां का दिल

बिना लिखे बिना कुछ बोले
मन की माँ के समझ में आये ।
चेहरा देख समझ जाती माँ
दुख के बादल मन पर छाये ।
बिट्टू हो या बिट्टी के सिर पर
बार बार माँ हाथ फिराये ।
जब भी कोई कष्ट सताये
.माँ का हृदय तत्क्षण अकुलाये ।
निराश नहीं होना धैर्य नहीं खोना
बार बार माँ कहती जाये ।
कहे नहीं जग से हारो तुम
ईश्वर सदा रहे सहाय ।
जो भी होगा अच्छा होगा
फिर क्यों तेरा मन घबराये ।
फल की चिंता करें नही हम
कर्म अपना करते जायें ।
श्री कृष्ण बन जाती मझ्या
अर्जुन सा मुझको समझाये ।
आशा झा

आपरेशन सिंदूर

गोरी के वंशजो को तुम माफ न करो
आंतकियो को तत्क्षण साफ तुम करो
शांति का पाठ हम सब पढ़ते रहे
मानवता की मूरत हम गढ़ते रहे
सद्‌भावो के बीज हममें पलते रहे
दुश्मनो के हृदय फिर भी जलते रहे
भाईचारे का भाव अब तुम न रखो
आंतकियो को तत्क्षण साफ तुम करो ।
युवा पीढ़ी नशेड़ी बनाते रहे
खोखला देश की रीढ़ करते रहे
सामने से लड़ाई लड़ न सके
पीठ पीछे से हम पर वार करे
अंजाम देने से पहले निष्फल तुम करो ।
आंतंकियो को तत्क्षण साफ तुम करो
नापाक इरादो को भांपा करो
चार टुकड़ों में उनको बांटा करो
आंतकियों को जन में से छांटा करो
खाइयों में दुष्टो को पाटा करो
जो तुमको मारे उनको मारा तुम करो

नंदोत्सव छठोत्सव

विधा-गीत

ले लो ले लो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की
दे दो दे दो बधाई श्री कृष्ण जन्म की ।
माँ यशोदा खुशी से समाती नही
दुनियाँ से तनिक भी लजाती नही
मुख बार बार चूमें अपने लल्ला की
ले लो ले तो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की
घूम घूम कर नाच दिखाते कान्हा
अपनी पतली कमर मटकाते कान्हा
छवि सबको लुभाती रही कान्हा की ।
लेलो बधाई श्रीकृष्ण जन्म की ।
ढोल ताशे मृंदग बजाओ सभी
दे दे के ताल नचाओ सभी ‘ ।
चहूँ गूंजे मधुर स्वर शहनाई की ।
कृष्ण की बांकी झांकी निहारे सभी
लीलाओं को उसकी न जाने सभी
मंत्रमुग्ध देखे लीला लीलाधर की
देदो दे दो दिखाई श्रीकृष्ण जन्म की

 हिन्दी भाषा

विधा : पद्य कविता

आओ चलो दिखा दे हम
अपनी भाषा में जान है । ।
अपनी भाषा पुष्ट हुई तो
बढ़ता अपना मान है ।
भावो को विस्तार मिलता
अभिव्यक्ति को सार मिलता ।
रचनाओं का हार मिलता
अपनो सा व्यवहार मिलता ।
अपनी भाषा में ही देखो
सुर की चढ़ती तान है ।
त्रुटि नही व्याकरण की इसमें
न कोई संदेह है ।
सहज सरल मीठी होने से
सभी जनो को गेह है ।
संस्कृत भाषा जननी इसकी
किसी से न परहेज है ।
आने वाली हर भाषा को
रखती मन से सहेज है ।
हिन्दी भाषा में मिलकर
हर भाषा पाती मान है।
छल करते अपने ही बेटे
सेवा न निज मां की करते
दुर्बल हुई तो दुर्बलता का
दोष भी मां के सिर रखते ।
अपनाते दूजो की भाषा
आकर्षण में उसके बंधते
हिन्दी दिवस मना करके बस
पुत्र धर्म का पालन करते।
दिखलाते जग को फिर भी
हिन्दी का रखते ध्यान है ।
अपनी भाषा पुष्ट हुई तो
बढ़ता अपना मान है ।

आशा झा
दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )

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