अनमोल सुख | Anmol Sukh
अनमोल सुख
( Anmol sukh )
एक दिन पुष्प पूछ बैठा माली से
ऐ माली इक बात बताओ
सारा दिन मेहनत करते हो
खून पसीना इक करते हो
तभी ये बगिया खिलती है
हरियाली यहां दिखती है।
कभी निराई,कभी गुड़ाई
कभी पौधों को पानी देते
डाल कभी खाद- मिट्टी में
तुम पौधों को पोषण देते।
आखिर इतनी मेहनत करके
बदले में क्या पाते हो?
इतने श्रम के बदले में क्या
पेट पूरा भर पाते हो?
सुनकर पुष्प की बात माली
धीरे से यूं मुस्काया
बोला सुनो प्यारे फूल
कहते-कहते हर्षाया।
इतनी मेहनत करने पर जब
तुम विकसित हो जाते हो
रंग-बिरंगे प्यारे-प्यारे
जब तुम यूं मुस्काते हो।
मिट जाती है सारी पीड़ा
तन-मन दोनों की मेरे
असीम सुख मिलता है दिल को
देखता हूं जब फूल घनेरे।
इस सुख का कोई मोल नहीं है
मन की संतुष्टि से ज्यादा
इस सुख में जो संतुष्टि है
उसमें ही मैं भर पाता।
दीपमाला गर्ग
एम. ए.(अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, हिंदी) बी.एड.,एम. एड.
एम.फिल (अर्थशास्त्र)
नेट (एजुकेशन)
संप्रति: सहायक प्राचार्या
सेंट ल्यूक शिक्षा महाविद्यालय
गांव चांदपुर, बल्लभगढ़।