मंथन | Manthan
मंथन
( Manthan )
पत्थरों से टकराकर भी
लहरों ने कभी हार नही मानी
बदल देती है उसे भी रेत के कणों मे
चलती नहीं शिलाखंड की मनमानी
ज्वार भाटा का होना तो नियति है
अमावस और पूनम की रात होगी ही
सागर की गहराई पर नाज है उन्हें
हौसले में कमी लहरों ने नहीं सीखा
मंथन के परिणाम से ही तो
महासागर में रत्नों की खान है
शीप के भीतर जन्म लेती मोती
लहरों के श्रम का ही तो वरदान है
जरूरी है कि आप तटस्थ रहें
उद्देश्य की पूर्ति में सतत कार्यरत रहें
विलंब का होना तो स्वाभाविक है
सफलता के प्रति अटल विश्वस्त रहें
दूरी तो कम होगी कदम के चलने से ही
ठहराव से मंजिल करीब नहीं आती है
अंधेरे उजाले तो हिस्सा हैं जीवन के
सोचने मात्र से ही पास नसीब नहीं आती
( मुंबई )