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मस्ती | Masti

 मस्ती 

( Masti )

 

रहा नहीं वह दौर अब
कि आकार पूछेंगे कुछ आपसे
आप बैठे रहे यूं ही
हो गए हैं वह घोड़े रेस के

सलाह लेने की आदत नहीं
देने के फितरत है उनकी
पढ़ी होंगी आप किताबें
वो माहिर हैं डिजिटल के

सिमट रही खबर आपकी अखबार के पन्नों में
हो गए हैं अब वह खिलाड़ी सोशल मीडिया के
परंपराएं रही होंगी कभी
दकियानुसी बातों में
मॉडर्न जमाना है अब
उलझे ही रहे क्यों उन्ही में

गोल है दुनिया
सिमट कर आ गई है मुट्ठी में
लगे हैं आप अभी घर के पूजा और अर्चना में

जीने के दिन है आज के
कल की देखेंगे कल के रोज
जी लेते हैं आज मस्ती में
लगे आग भले बस्ती में

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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