इन अँखियों को समझाओ तो
किसे नहीं खेलें होली बताओ तो
पुछती है कोयल बताने आओ तो
सभी आये लेकिन वो नहीं आए
इन अँखियों को भी समझाओ तो।
इंतजार के दिन दिखाए बहुत तुम
नहीं चाहिए था, सताए बहुत तुम
कैसे करें तारीफ झूठे हम बोलो
कहाँ कहकर अपनाए बहुत तुम।
जैसे तैसे मेरे लट बिखरे पड़े हैं
दरवाजे पर हम तेरे लिए खड़े हैं
तुम तो आओगे हर हाल में घर
सपने एक नहीं मैंने कितने गढ़े हैं।
विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड