“आपको पता है योगी जी के राज चल रहा है। योगी जी के राज में बहुतई कड़ाई है। हमही अकेले नहीं खाइत है। बाबू लोगन के बिना खिलाएं काम नहीं करते। इसलिए बिटिया के जो पैसा मिली उसमें से आधा देना होगा।”- यह बात रमेश को एक बिचौलिया समझा रहा था।
बात दरअसल यह है कि रमेश के घर बेटी ने जन्म लिया है। सरकार की किसी योजना के अंतर्गत बच्चियों के जन्म पर सरकार 50000 के लगभग उनकी सुरक्षा आदि के लिए देती है।
रमेश की पत्नी रोज धुन लगाए रखती थी कि-” तुम बिटिया का फॉर्म क्यों नहीं भर देते। तुम्हें तो अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिलती है। कुछ बच्चों के भी चिंता करोगे।”
रमेश अक्सर काम में व्यस्त रहता था। उसे लगता था कि कुछ होने जाने वाला नहीं है। पूरा सरकारी महकमा भ्रष्ट हो चुका है। लेकिन पत्नी के जिद थी इसलिए उसने ट्राई करने का प्रयास किया।
वह जिस भी फार्म भरवाने वाले व्यक्ति के पास जाता सबका एक ही कहना था कि -“बहुत ही कढ़ाई बा योगीराज में।”
और मिलने वाली राशि में से आधा 50% देने की मांग रख देते। ऊपर से जन्म प्रमाण पत्र श्रमिक प्रमाण पत्र आदि अनेकानेक प्रमाण पत्र बनाने में भी महीना बीत गए।
इस प्रकार से खुलेआम 50% की रिश्वतखोरी की मांग से उसका दिमाग ठनक गया। उसे लगा कि यह योगीराज चल रहा है कि जंगल राज। पूरा का पूरा सरकारी तंत्र ही भ्रष्ट हो गया है कितने बिचौलियों को उन्होंने पाल रखा है।
एक बार उसने अपने एक परिचित समझ कर उसने सोचा कि कुछ कम में काम बन जाएगा। लेकिन यहां भी उस परिचित व्यक्ति ने कहा -” का बताएं हिया सब खाई बरे बैठा है। मान लो हमका ना दे लेकिन ऊपर बिना दिए काम ना होई वाला बा । हम बहुत चाहे लेकिन बिना खियाए पियाए काम ना होई ई तो पक्का जान ला!”
मरता क्या ना करता उसने कहा ठीक है। अब समस्या हो गई ऑनलाइन जन्म प्रमाण पत्र के। हाथ से लिखा प्रमाण पत्र तो था उसके पास। लेकिन वह मान्य नहीं हो रहा था।
अब ऑनलाइन जन्म प्रमाण पत्र के चक्कर में भी महिना कट गए।
किसी प्रकार से जन्म प्रमाण पत्र बना तो जॉब कार्ड की समस्या आ पहुंची।
इस प्रकार की माथापच्ची से वो थक गया था। अंत में बिटिया रानी का फॉर्म नहीं भरा जा सका।
उसने लगने लगा कि सरकार तो बाबुओं को पैसा बेकार में खर्च कर रही हैं। जब उसने बाबुओं को खुलेआम लूटने के लिए छोड़ दिया है।
अंत मे वह निराश होकर गुनगुनाते हैं-
बहुतई कड़ाई,
बहुतई कड़ाई बा
योगी जी के राज में
बहुतई कड़ाई बा ।
सबन बाबू जी
कड़ाई बता बता के,
जनता को खुलकर,
लूटत बांटे हों।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )