डॉक्टर सुमन धर्मवीर जी की कविताएँ | Dr. Suman Dharamvir Poetry

प्यारी हिंदी

हमारे होठों पर प्यारी हिंदी।
दिमाग में
सोच में
घर में
ऑफिस में हिंदी।

पेपर पर हिंदी।
कंप्यूटर में
फाइलों में
मोबाइल में प्यारी हिंदी।

कहने ,समझने
की भाषा
मान _सम्मान,
आत्म सम्मान
दिलाती हिंदी।

पहचान हमारी हिंदी
मधुर स्मृतियों को स्मृति चिन्ह बनाती प्यारी हिंदी।

हिंद की बिंदी हिंदी।
तिरंगे से सजी
जय हिंद के घोष से गूंजी
प्रकृति पूजा से
बांसुरी बजा ती हिंदी ।

विभिन्न बोलियों,
भाषाओं,संस्कृतियों,
सभ्यताओं
को संजोती
हमारी प्यारी हिंदी।

शस्त्र ,शास्त्र क्रांति में बिफरी
देशभक्ति की मिसाल बनी
स्वतंत्रता आंदोलन की जान थी हिंदी।
आज भी आजादी को गढ़ती
राष्ट्रीयता की भावना से लिपटी प्यारी हिंदी।

देश को जोड़ती हिंदी
देश की स्थानीय भाषाओं की बनी कड़ी हिंदी।
चाची,ताई ,बुआ, भतीजी, मौसी,भांजी,बनीं गुजराती, मराठी कन्नड़ तेलुगू ,तमिल मलयाली आसामी
तो
दादी,नानी बनी प्यारी हिंदी।

रंग बिरंगी पोशाकों से सजी
प्यारे-प्यारे सुहाने सपनों से गुंथी।
हर सुर ताल में बजती गाजे ,बाजे, हर साज पर थिरकती हिंदी ।

जिंदगी की थकान कम करती
दिमाग का तनाव कम करती
हिंदवासियोँ की जिंदगी सहज सरल बनाती प्यारी हिंदी।

ज्ञान विज्ञान तकनीक में उभरी हिंदी
चैट जीपीटी,कंप्यूटर, ए.आई, रोबोट ,
बोले हिंदी।

मून मिशन पर प्रज्ञान रोवर से चांद पर पहुंची हिंदी।
विश्व में आदर भाव दिलाती हिंदी।
अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने की खुद में अनंत संभावनाएं समेटे
हमारी प्यारी हिंदी।

अति धार्मिकता

अति धार्मिकता विश्व में फैली है।
हिंदू की अति धार्मिकता
मुस्लिम की..
सिख की…
क्रिश्चियन की..

हर धर्म की दूसरे धर्म
से नफरत फैली है।
दूसरे धर्म के प्रति आक्रामकता..
मानव धर्म की रिक्ततता फैली है।

मानव के प्रति मानव की श्रद्धा कहां खो गई?
लोकतांत्रिक व्यवस्था
कहां सरक गई?

पर्यावरण प्रदूषण के साथ यह मानसिक प्रदूषण ..
धर्म के प्रति भक्ति का प्रदूषण गंभीर फैला है।
अहंकार फैला है।

सच कहां गायब हो गया?
झूठ भर भर के फैला है।
हाहाकार मचा है ।

असली फसल कहां खो गई?
खरपतवार फैला है।
जाहिलपन फैला है ।

नम्रता कहां खो गई?
कट्टरपन फैला है।
अलगाव फैला है।

प्रेम,मुहब्बत कहां खो गई?
गाली गलौज ,खराब माहौल पसरा है।
गड़बड़ झाला पसरा है।

सामंजस्य, सहनशीलता कहां सिरक गई?
मारधाड़ ,आगजनी का जल जला है।
अत्याचार का बोलबाला है।

सुख, शांति कहां चली गई?
घृणा,द्वेष का रेलपेला है।
हिंसा युग आन पड़ा है।

अति धार्मिकता का बोलबाला है।2

स्वागतम

सुस्वागतम
सुस्वागतम सुस्वागतम।

सुकोमल ,करबद्ध करकमलों से सुस्वागतम सुस्वागतम सुस्वागतम।

सुस्वागतम सुस्वागतम
सुस्वागतम।
सुस्वर, सुवाणी,
सुंदर वचनों से सुस्वागतम सुस्वागतम सुस्वागतम।

सुस्वागतम सुस्वागतम सुस्वागतम ।

सुसंस्कारी, सुझंकृत , सुंदर नृत्य से सुस्वागतम सुस्वागतम सुस्वागतम।

                                          सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम।🙏

ओस की बूंदे पीती बच्ची

मरू स्थल
सुखी घास
सूखे पेड़
सुखी फसल
कटी फसल
फिर
फसल के सूखे ठूंठ

सुखी मिट्टी के खेत
अब
ओस से ढकी
हरी घास आई
बाजरी की बालियां व पत्तियां आईं।

हाइवे पर भागते ट्रक
बस,ऑटो
और गाड़ी।
गाड़ी से उतरी पांच साल की बच्ची।

अत्यधिक प्यासी,
सुखा गला
सूखे होंठ,
घास पर दौड़ी
नर्म नर्म घास पर
लौटती रही।
बालियो और पत्तियों पर
पड़ी ओस की बूंदों से खेलती रही।

हाथ पैर गला
पूरी बॉडी की गीली
ओस की बूंदे
छोटी छोटी
हथेलियों पर
उड़ेलती रही
एक पत्ते से
ओस की बूंदें
हथेली पर उड़ेली
दूसरे पत्ते से..
तीसरे से..
चौथे से..
पांचवें से..
फिर
हथेलियां होठों पर
लगाकर प्योर वाटर पीती रही।

अब
बच्ची तृप्त हुई ,
सूखे होंठ
फिर से
मुलायम और कोमल जुबान गीली हुई।

ओस की बूंदे पीती बच्ची। 2

हिंद प्रेम

है तमन्ना यही।
बस
यह जीवन मेरा
हिंद प्रेम में ।
हिंदी में गीत गाते गाते गुजरे।

है तमन्ना यही।
बस
यह जीवन मेरा
वंदे मातरम। वंदे मातरम।
जैसे देश हित में
नित नए-नए गीत बनाते-बनाते गुजरे।

है तमन्ना यही।
बस
यह जीवन मेरा
ओज भरी हुंकारो से
वीरों ,सैनिकों में साहस, जोश भरते भरते गुजरे।

है तमन्ना यही।
बस
यह जीवन मेरा
लेखनी से नित अंधकार मिटा कर
देशभक्ति के गीत लिखते लिखते गुजरे ।

है तमन्ना यही।
बस।
यह जीवन मेरा
रंग मस्ती का
लहू बनकर
रग रग में देशभक्ति का जुनून जगाते जगाते गुजरे।

है तमन्ना यही।
बस
यह जीवन मेरा
एक हाथ में तिरंगा
दूजे में मशाल
युवाओं में देश प्रेम की लौ ।
जलाते जलाते गुजरे।

है तमन्ना यही ।
बस
ये जीवन मेरा।
विश्व पटल पर ।
स्वर्णिम अक्षर में ।
जय हिंद जय हिंद ।
का घोष करते करते गुजरे।

है तमन्ना यही ।
बस
ये जीवन मेरा ।
हिंदी और हिंद का यश गान गाते गाते गुजरे।2

राष्ट्रीय झंडा

7 अगस्त 1906 …
क्रांति जननी ..
मैडम भीकाजी कामा
के हाथों ने
सर्वप्रथम
जिसको ऊपर उठाया।
राष्ट्रीय पताका वह कहलाया।2

पिंगली वेंकैया ..
के हाथों ने
जिसको रचाया।

22 जुलाई 1947 …
संविधान सभा
के सदस्यों ने
जिसको अपनाया।

16अगस्त 1947…
पं.जवाहरलाल नेहरू
के हाथों ने
जिसे फहराया।
भारत का
राष्ट्रीय ध्वज वह कहलाया।2

केसरिया, सफेद ,हरे रंग
से सुसज्जित।
बीच में 24 तीलियों
से गठित
नीला चक्र सुशोभित।

शक्ति ,साहस और बलिदान से भरपाया
शांति सत्य से रचाया खुशहाली ,समृद्धि से तराया ।
राष्ट्रीय तिरंगा वह कहलाया।2

संयम,शांति,शील ,सुरक्षा, सेवा, सहकार्य,समृद्धि ,संगठन,समता।
प्रेम ,मैत्री ,बंधुत्व
कल्याण ,उद्योग ,नीति,कर्तव्य, क्षमा ।

नियम ,अर्थ ,न्याय, अधिकार,बुद्धिमता
का ज्ञान जो फैलाया।
राष्ट्रीय झंडा वह कहलाया।2

इंद्रधनुष (इंट्रा टनुस)

तोतली आवाज

मेरी मम्मी की किट्टी पार्टी में सात (साथ) आंटी आती हैं।
पहली(पे..ली)आंटी बैंगनी दुपट्टा( टू. पत्ता )पहनती है ।
दूसरी आंटी जामुनी (स.मुनि)दुपट्टा पहनती है ।
तीसरी आंटी नीला दुपट्टा पहनती हैं ।
चौथी (छूटी)आंटी हरा दुपट्टा पहनती हैं ।
पांचवी (पंत विवी) आंटी पीला दुपट्टा पहनती हैं ।
छठी(छो..टी )
आंटी संत्री दुपट्टा पहनती हैं ।
सातवीं(साथी) आंटी लाल दुपट्टा (तु..प…त्ता ) पहनती है ।
जब सातों(साथ ओ) आंटी अपने-अपने दुपट्टे (तुपत्ते) लहरा कर बैठती हैं।
तब एक बहुत लुभावना (तुभ आबना) बहुत (टुंडर) सुंदर इंद्रधनुष (इंट्राटेनस)बनता है।

मॉम्स ब्वॉय

मैं मॉम्स ब्वॉय बनूंगा।
मैं बिना हिंसा किए शांति दूत बनूंगा।
मैं मॉम्स ब्वॉय बनूंगा।

मैं एक गरीब, शोषित आदमी बनकर दर्द झेलूंगा।
मैं लड़कियों जैसा सहनशील और बलिदानी बनूंगा।
मैं मॉम्स ब्वॉय बनूंगा।

मैं झुक सकता हूं, पर नहीं मिटूंगा।
लोग मुझे बार-बार गिर आएंगे ,
तो मैं बार-बार उठूंगा।
मैं मॉम्स ब्वॉय बनूंगा।

लोग
मेरी राह में कांटे बिछाएंगे,
मैं उन्हें चुग चुग कर फेंक दूंगा।
मैं मॉम्स ब्वॉय बनूंगा।

मैं अपना रास्ता खुद बनाऊंगा।
दुनिया टेढ़ी चाल चले तो चले,
मैं सीधी राह चलूंगा।
मैं मॉम्स ब्वॉय बनूंगा।

दुनिया वेव में बहे तो बहे ,
मैं ठहर कर सोचूंगा।
मैं मॉम्स ब्वॉय बनूंगा।

दुनिया पब्लिक इंटरेस्ट पर चले तो चले।
मैं पब्लिक इंटरेस्ट क्रिएट करूंगा।
मैं मॉम्स ब्वॉय बनूंगा।

मेडिटेशन लेडी

मानव जीवन भगवान का एक खेल है।
भाग्य और दुर्भाग्य इसके दो चक्र हैं। जब ये दोनों चक्र साथ _साथ या बारी-बारी घूमते हैं।
तब जिंदगी चलती है।

जिंदगी के दो पर्दे हैं ।
गम और खुशी ।
जब दोनों पर्दे एक-एक करके खुलते हैं ।
तब दिन-ब-दिन जिंदगी निखरती है।

गम और खुशी दोनों परदो को एक नाजुक सी डोर बांधती है।
वह नाजुक डोर है।
सांसो की।
इस सांस से हम अपने गम अंदर, बहुत अंदर दफन कर सकते हैं।

इसी सांस से हम खुशियां ,ढेर सारी खुशियां बाहर निकाल सकते हैं।”

जीवन

सूरज, चांद सितारों से ब्रह्मांड का जग रोशन है सारा।

पर,
नित अंधियारा
अंधेरे में डूबो देता है जग सारा।

यह प्रतिद्वंदिता चलती रहती है।
दोनों की
अनवरत
आदिकाल से अनादिकाल तक।

इस जिद्दोजहद में न कोई जीतता है ।
न कोई हारता है

न ही इस जग को कभी सूरज ,चांद ,सितारे हमेशा के लिए रोशन ही कर पाते हैं।
न ही अंधियारा जग को को हमेशा के लिए अंधेरे में डुबो पाता है।

न ही जग पर इनका कोई स्थाई प्रभाव पड़ता है।

दोनों ही अपनी अपनी परिक्रमा करते हैं ।

दोनों की परछाइयां आती जाती हैं।
पर ,
जग अप्रभावित रहता है ।

यही है वास्तविक जग।

बिल्कुल ऐसा ही है जीवन ।
सुख ,सफलता और खुशियों से मनुष्य का जीवन रोशन है सारा।
पर ,
एक दुख अंधेरे में डुबो देता है जीवन सारा ।
यह प्रतिद्वंद्विता चलती रहती है। दोनों की ।
अनवरत आदिकाल से अनादि काल तक।

इस जिद्धोजहद में न कोई जीतता है। न कोई हारता है।

न ही इस जीवन में सुख ,सफलता और खुशियां। जीवन को खुश ही कर पाते हैं और ना ही दुख जीवन को हमेशा के लिए दुख में डुबो पाता है।

न ही जीवन पर इनका कोई स्थाई प्रभाव पड़ता है।

दोनों ही अपनी अपनी परिक्रमा करते हैं ।
इनकी परछाइयां आती जाती हैं।
पर ,
जो जीवन जग की तरह अप्रभावित रहता है।
वही है वास्तविक जीवन।

तलवार

शायद जीवन एक दरिया है।
शायद भावनाओं का समुंद्र भी।

पर दरिया और समुंद्र को ,
तलवार की नोक के सहारे पार नहीं किया जा सकता।

क्यों?
क्योंकि तलवार अपना साथी खोजती जरूर है,
पर केवल युद्ध के वक्त पर।

युद्ध के बाद वह अपनी म्यान में वापस चली जाती है ।
औरअपने साथी को भी म्यान में वापस जाने को कहती है।

वह स्थायित्व चाहती जरूर है।
पर स्थाई रहना उसकी प्रवृति नही।
इसीलिए वह खुद को समझने में असमर्थ है।
और अन्य को भी।

वह कइयों को आजमाती है।
साथ भी देती है।
परंतु रहती वह अकेली ही है।

शायद वह अपनी प्रवृति की इस विडंबना को समझने में असमर्थ है।
शायद इसीलिए वह जीवन रूपी इस दरिया को और भावनाओं रूपी इस समुंद्र को पार करने की जगह
केवल एक ही जगह खड़ी गोते खाती रहती है।

इंडिगो फ्लाइट

कूल कूल ब्लू इंडिगो फ्लाइट
रनवे पर कूल भागती ब्लू एयरबस
भागते भागते
धरती से ऊपर उठ
हॉट सूरज से मिलने को आतुर।
और
फिर
क्षितिज को क्रॉस करती साथ ही कूल ब्लू स्काई
को टच करने की कोशिश करती एयर बस।

कूल कूल इंडिगो ब्लू फ्लाइट
ब्लू स्काई
प्लेन के पायलट सीट से लेकर विंड विंग तक अर्धगोलाकर आर्क
सूर्य की
जलती हुई बड़ी सी रिंग
रिंग पर पीली ,सफेद
चमचमातीं किरणें।

कूल कूल इंडिगो फ्लाइट की
ब्लू सीट्स
ब्लू स्टार्टर बैग में मिला मेरा हॉट स्टार्टर।
कूल कूल इंडिगो फ्लाइट के
ऊपर कूल ब्लू स्काई
नीचे हॉट धूप बिखरी हुई
पर बीच में कूल ब्लू झील
नदी नाले तालब यानी
कूल
वाटर बॉडीज।

इंडिगो फ्लाइट
ब्लू ड्रेस में एयर होस्टेस
ब्लू स्कर्ट ब्लू टाई ऊपर से हॉट स्वेटर पहने होस्टेसऔर
क्रू मेंबर्स
और
ब्लू कूलेस्ट एयरलाइंस के
कूल ब्लू कप में हॉट काफी पीती मैं ।

ब्लू इंडिगो फ्लाइट
की विंडो से दिखती
ब्राउन जमीन
बीच बीच में धरती पर पड़े क्रैक्स
ग्रे पहाड़
बीच में ग्रीन ग्रीन जगहें
बड़ी छोटी बिल्डिंगें
चिलचिलाटी धूप की सफेदी में साफ दिखते रास्ते
सड़कें
हाइवे
अंदर दिखते कूल पैसेंजर्स ।

ब्लू इंडिगो फ्लाइट
का ब्लू हिंद महासागर से उठना
धूप में उड़ना
ऊंचे ऊंचे पहाड़ों को पार करना
फिर
ब्लू प्रशांत महासागर मुंबई
एयरपोर्ट पर उतरना।

ब्लू इंडिगो एयरलाइंस
बड़े बड़े ओजस्वी
करतब दिखाने वाली
कूल कूल एयरलाइंस ।

भारी बस्ते शिक्षा हारे

हाय!
छोटे-छोटे मासूम विद्यार्थी
छोटे छोटे पग लेते जाते
छोटे छोटे कंधों पे टांगे भारी बस्ते।

हाय!
चलते चलते थकते
रुकते, ठहरते ,सुस्ताते,
छोटी सी पीठ नीचे और नीचे मोड़ते जाते,
शिक्षा से ऊबते जाते।

हाय!
छोटे छोटे माथे पे
शिकन ,मायूसी लिए
शिक्षक से शिक्षा लेने में
रुचि नहीं दिखाते,
पराजित सा महसूस किए जाते।

हाय!
छोटे छोटे विद्यार्थी
तन_मन के बोझ तले
केवल कटोरा ले के मिडमील के भिखारी बनते जाते,
शिक्षा से हारते जाते।2

देश है मेरा

प्रहरी बन तीन तरफ समुद्र फैला
एक तरफ हिमालय ऊंचा खड़ा।
तिरंगा जिस पर फहरा।
वह भारत
देश है मेरा। 2

कृषि योग्य मिट्टी से भरा खनिज लवण धातु जिसमें गढ़ा।
छह ऋतुओं को जिसने धरा।
वह जम्बूद्वीप
देश है मेरा। 2

विभिन्न बोलियां से जो गूंजा
विभिन्न संस्कृतियों से पनपा।
विभिन्न वेशभूषाओं से सजा।
वह इंडिया
देश है मेरा। 2

अक्रोध से क्रोध को जिसने भगाया
सच से झूठ को हराया।
दान से कंजूस को मनाया
मुक्ति का रास्ता जिसने बताया।
वह आर्यावर्त
देश है मेरा। 2

इच्छाओं को रोकना जिसने सिखाया
आत्मजयि को जग में विजेता बताया।
दूसरों का दुख छुड़ाना सिखाया।
वह हिंदुस्तान
देश है मेरा ।2

मनुष्य को उद्यमी जिसने बनाया शीलवान ,प्रज्ञावान होकर जीना सिखाया।
अनुभव को साक्षी प्रमाण बताया।
वह अल्हिंद
देश है मेरा । 2

जेनेटिक रोग भगाएं

आओ जेनेटिक रोग भगाएं।
आचार व्यवहार बदलें
खान-पान
रहन-सहन
सोचने-समझने का तरीका बदलें।

आओ जेनेटिक रोग भगाएं।

दूसरों को परेशान करने वाली सोच बदलें
पॉजिटिव वाइब्रेशंस हाई कर दें।

नतीजा

भौतिक कार्यप्रणाली
स्वयं बदल गई
गंदी आदतें अच्छी आदतों में तब्दील हो गईं।
दुराचारी
आज सदाचारी बन गए।

” मन ही सुख _दुख का मूल ”
बुद्ध कह गए।2

“ओ..म व्याधि नमः भाड़ में जाए ”
मंत्र जपते गए
डर से आगे बढ़ते गए
प्रेम ही प्रेम बिखेरते गए।

नतीजा

पुरानी कोशिका मेमोरी मर गईं।
नई कोशिकाओ को पुरानी कोशिकाओं से मेमोरी पास नहीं की गईं।

मूड को चुटकी बजाकर चेंज करते गए।
गंदी सोच को अच्छी सोच में चेंज करते गए।

नतीजा

अच्छी सोच
अच्छा आचरण
अच्छा व्यवहार
खुदा को आभार
बदल गया सारा संसार।
अच्छाई पर पैदा हो गया विश्वास।

नतीजा

पूरी कायनात काम पर लग गई।
पूरी बॉडी रिजुवनेट हो गई।
जेनेटिक रोग – व्याधि भाग गई। 2

बीच ( Middle )

नीचे बादल
ऊपर बादल
बीच में हवाईजहाज
हवाईजहाज के बीच में मेरी सीट

दाएं बादल
बाएं बादल
बीच में मेरा हवाईजहाज
हवाईजहाज के बीचों बीच मेरी सीट

ऊपर बैगेज
नीचे बैगेज
बीच में मेरी सीट
दाएं सीट
बाएं सीट
बीच वाली मेरी सीट

पीछे सीट
आगे सीट
बीच में मेरी सीट
महसूस करूं
सफोकेटेड
या
महसूस करूं
सेफ।
क्यों
क्योंकि
मैं हूं
इन दोनो के बीच।

मेरी बहन बड़ी
मेरी बहन छोटी
मैं हूं बीच की।

शायद मेरी किस्मत है बीच की।
न सुखी
न दुखी
सिर्फ बीच की।
सिर्फ बीच की।।

प्रेयसी

तुम मेरी सुंदर प्रेयसी।
सदाचारी
स्वेच्छाचारी
सुचरी
आओ चलो
करें सुखचरी।

तुम ।।।।

आओ चलो
पकड़ें सीटी
बजाए प्रेमरागिनी।

तुम ।।।।।

आओ चलो
करें
प्रेमरस में
गोताखोरी।

तुम।।।।

आओ चलो
अब बैठें
सागर किनारे
बजाए चैन बांसुरी।

तुम।।।।।।

आओ चलो करें
पार ये
भवसागरी।

तुम मेरी सुंदर प्रेयसी।2

आप और मैं

काश!
आप पॉजिटिव एनर्जी से ड्राइव होते।
तो आप आप न होते।
मैं मैं न होती।
शायद
आज
आप और मैं
हम
होते।

काश!
आप न्यूट्रल होते।
तो आप आप न होते।
मैं मैं न होती ।
शायद
आज
हम
हमराज होते।

काश!
आप अपनों
की करतूतों पर
पर्दा न डालते।
बल्कि
मेरी ढाल
बनते
मुझे
सहारा देते।
तो
शायद
आज
आप बेसहारा न
होते।

काश !
आप
मुझे
अपनो के व्यंग्य बाण से बचाने में दिलेरी दिखाते।
तो
आज मैं
आपको
अवश्य ही बचा लेती।
शायद
आज
हम दिलेर
हमसफर होते।

काश!
आप
मानसिक हैंडिकैप्ड न होते।
तो आप आप न होते।
मैं मैं न होती।
शायद
आज
हम हमजोली होते।

काश!
आप आप न होते
मैं मैं न होती
जरूर ही
आज
सिर्फ और सिर्फ
हम दोनो
एकजां
एकराह
होते।

एरोप्लेन और मैं

एरोप्लेन उड़ा
मैं बैठी
विंडो सीट
बाहर देखा
सागर चला मेरे साथ साथ
चलता गया साथ साथ
फिर
रुकने लगा
थकने लगा
चला गया कहीं पीछे।
बस मेरा एरोप्लेन
ही चलता गया।

एरोप्लेन उड़ा
मैं विंडो सीट बैठी।
देखा बाहर
मेरे साथ मेरा शहर चला।
कुछ दूर चला ।
फिर
रुकने लगा।
मुझे टाटा बाय
कहने लगा।
चला गया।
लाइट /जगमगाहट बंद हो गई।
गुम हो गया
पीछे चला गया।

आज एयरोप्लेन उड़ा
मैं बैठी विंडो सीट
देखा बाहर
चला पूर्णिमा का चांद साथ
बहुत दूर तक
चला साथ
उसके पीछे
तारे बने पूछ।
लेकिन
चांद थामने लगा
रकने लगा
पीछे चला गया।
तारों की पूछ भी गई पीछे।
बस एयरोप्लेन ही आगे बड़ा।

आज एरोप्लेन उड़ा।
मैं बैठी विंडो सीट।
बाहर देखा
चले बादल साथ साथ
उड़े बादल साथ बहुत दूर तक
फिर
थमने लगे
रकने लगे
चले गए पीछे
बस एयरोप्लेन ही आगे बड़ा।
बस ऐरो प्लेन
ही आगे बड़ा।
अब
मैंने बाहर नहीं दे
खा।
सिर्फ एरोप्लेन
को ही देखा।
बस एरोप्लेन ही आगे बड़ा।

बारिश बरसी
मूसलाधार
फिर रुकी
फिर बरसी
फिर थम गई।
चली गई पीछे।

असंख्य
लाइट से जमगता दिल्ली शहर
जैसे असंख्य तारों से जगमगाता
मानो जगमगाता गगन बिछ गया
जैसे
उल्टा गगन
तारे जमीन पे
आ गए
चले
फिर

अब एरोप्लेन हुआ धीमा
आया नीचे
मैने देखा बाहर
मेरा होम टाउन
दिखा
टिमटिमाता
जगमगाता
मेरा वेलकम /स्वागत करता।

अब एरोप्लेन रुका
उसने बाय कहा
मैं बाहर आई
टैक्सी ली
टैक्सी चली
चलती गई
दूर तक चली
फिर
धीमी हुई
थमने लगी
रुक गई।

मैं चली
लिफ्ट मैं चली गई
घर पहुंच गई।
अब
मैं थमी।
रुकी
लेटी
सबको बाय की
गुड नाईट की
सो गई।

प्यार की तलाश

मुझे नहीं मिला
कोई अच्छा लड़का।
कोई दिखने में सुंदर कोई बोलने में
स्वीट
कोई बाई नेचर
अच्छा ।

तो सोचा !
चलो आज मैं ही
बनूं सुंदर दिखने में
बनूं स्वीट बोलने में
बिखेरूँ खुशबू
और
बाय नेचर
खुद ही
इतनी अच्छी बन जाऊं।
इतनी अच्छी बन जाऊं।।
कि किसी की तलाश पूरी कर दूं।

नहीं मिला प्यार देने वाला मुझे
नहीं मिला जान
लुटाने वाला।
मुझ पर मिटने वाला
चांद तारों पर सैर करने का वादा करने वाला।

तो सोचा
मैं ही प्यार लुटाऊं
मैं ही दुलार दिखाऊं
किसी के प्यार में
इतनी दूर जाऊं
इतनी दूर जाऊं
कि
चंद्रयान पर जीवित यात्री
यानी
अगली जीवित रोवर
मैं ही बन जाऊं।
फिर
चांद की सैर मैं ही
उसे कराऊं।

क्यों युद्ध करते हो

सोने चांदी
हीरे जवाहरात
जमीन जायदाद
मिलेनियर और
घर प्रॉपर्टी के ओनर।

बनने के लिए
रोज खपते हो
रोज मरते हो
जिसे कहते हैं नोकरी पेशे,
उद्योग धंधे।

पर क्या तुम्हे मालूम है?

तुम लेकर नहीं
जा सकते यहां से
एक भी रुपया
सोने का एक आभूषण
हीरे का एक नन्हा_ सा जगमगाता पत्थर।
फिर भी
रोज इनको प्राप्त
करने को हो बेकरार
इतने बेकरार
इतने बेकरार
कि
उलझ गए हो
दो नंबरी पैसों में
डूब गए हो
काले कारनामों में
इलीगल
उद्योग धंधों में।

करते हो रोज जी तोड़ मेहनत
लगाते हो रोज ऐसे आस
कि
कल होगी तुम्हारी जमीन
तुम्हारा घर
खूब सारे सोने चांदी के गहने
रत्न हीरे जवाहरात
जैसे कि ले जा सकोगे
इस लोक से अपने साथ ये सब।

पर
क्या तुम्हे मालूम है?
तुम लेकर नहीं
जा सकते यहां से
एक बूंद पानी की
एक इंच भी जमीन की
मिट्टी का एक कण भी
हवा का एक गुबार भी।
फिर
क्यों नाहक
गले में जंजीरें बांधते हो?
क्यों लाभ _हानि के लिए भ्रष्टाचार करते हो?
क्यों लोभ में
पानी ,भूमि
तेल, यूरेनियम पर कब्जा करते हो?
क्यों लड़ते हो?
क्यों दूसरे देशों पर आक्रमण करते हो?
क्यों युद्ध करते हो?? 2

प्रकृति

पेड़-पौधे
जीव -जंतु
पशु -पक्षी
जलीय -प्राणी
सब रचनाएं प्रकृति की।
नहीं बिगाड़ी किसी ने संरचना प्रकृति की।
हे मानव !
केवल तूने ही बिगाड़ी सुंदरता प्रकृति की।

काटे पेड़
उजाड़े जंगल
बहाए
पानी व मिट्टी में रसायन
उड़ाया धुआं विषैला
पिघलाई ग्लेशियर श्रृंखला।

हे मानव!
क्यों केवल
तूने ही तोड़े
ढांचे प्रकृति के?

हे मानव !
घूमफिर
खापी
ऐश कर
मजे ले ।
पर
रह यहां बनके
तू विजिटर प्रकृति की।

मत खोद जमीन
मत खंगोल समुंद्र
मत कर उलट फेर
मत रह गुमान में बुद्धि की।
तेरी
इसी बुद्धि ने
चालाकी ने
स्वार्थ ने
देख
कैसे बिगाड़ी रचनाएं सभी प्रकृति की।

ठहर तू
संभल तू
सुखाए हैं
तूने नदी,नाले , तालाब
भरेगा कब तू?
जल्दी भर
बन दयालु
कर क्षतिपूर्ति तू प्रकृति की।

नहीं तो
अब पछताएगा
अब सूखेगा
सूखे से
या
बहेगा बाढ़ में
उड़ेगा आंधियों में
या
मरेगा घुट के ।
अब
करेगी तेरा हिसाब किताब प्रकृति ही।

अब नही बचेगा तेरा नामो निशान।
तेरा वंश।
सोच!
क्या बच पाएगा?
चपेट से
तू अब प्रकृति की? 2

कलम

मैं कलम हूं
बैठे – बैठे अक्सर खो जाती हूं,
न जाने किस सोच में गुम हो जाती हूं।

कहने को बहुत सी भीड़ है
चारों ओर,
पर
तकलीफों में खुद को अकेला ही पाती हूं।
गुमसुम हो जाती हूं
बैठे बैठे अक्सर खो जाती हूं।

वो लोग जो कहते हैं
कि
सब ठीक हो जाएगा,
परेशानियों में
उन्हें ही सबसे दूर पाती हूं।
खुद ही चल पड़ती हूं
दुख दर्द दूर भगाती जाती हूं।

मैं कलम हूं
जात – पात, ऊंच – नीच,रंग भेद से परे हूं ,
सबमें इंसानियत ढूंढ ही लाती हूं।
समझाते हैं लोग
कि
दुनिया इतनी भी सीधी नहीं …
पर क्या करूं..?
आदत से मजबूर हूं,
इसी आदत से मजबूर होकर दुनिया को सीधा करती जाती हूं।।

झूठ,फरेब,धोखा ..सब देखा है मैंने,
पर
लौट कर अच्छाई के रास्ते पर आ ही जाती हूं।
एक दिन
होगा दुनिया में बोलबाला अच्छाई का,
इसी उम्मीद पर
बस आगे आगे लिखती जाती हूं।2

दहेज प्रथा

विवाह लड़का लड़की का हुआ।
दहेज बीच में क्यों आया?
हाय !
खुद भी बने भिखारी।
लड़के को भी भिखारी क्यों बनाया?

विवाह लड़का लड़की का तय हुआ।
एक करोड़ दो करोड़ का डील बीच में क्यों आया?
हाय! खुद भी बने भिखारी ।
लड़के को भी भिखारी क्यों बनाया?

हमने लड़की को कैपेबल बनाया। तुमने लड़के को कैपेबल बनाया।
बीच में ये लालच तुमको क्यों आया?
हाय!
खुद भी
बने भिखारी ।
लड़के को भी भिखारी क्यों बनाया?

हमारी डॉटर को डॉटर इन लॉ तुमने बनाया।
तुम्हारे सन को सन इन लॉ हमने बनाया।
सन को पाकर भी हम न बने भिखारी।
हाय!
डॉटर यानी लक्ष्मी पाकर भी तुम बने भिखारी।
लड़के को भी भिखारी क्यों बनाया?

नया जमाना है आया।
दोनों परिवारों का मिलन शुभ समय आया।
पैसा, गाड़ी, बंगला बीच में मत लाओ।
लड़का लड़की में प्यार पनपाओ। 2

जीवन का मूल्य

बेटा
स्लो एंड सेफ ड्राइव करना
समय पर घर आना।

कहीं… दू..र न जाना
किसी गलत संगति में न पड़ना।
कभी झूठ न बोलना
घर लौटने में
कभी लं..बी रा..त न करना।

याद रखना

आपकी मां आंखें मूंदे आपका इंतजार कर रही है।
अपने जीवन के मूल्य को समझना।

भैया
स्लो एंड सेफ ड्राइव करना
समय पर घर आना
कहीं… दू…र न जाना
किसी गलत संगति में न पड़ना
कभी झूठ ना बोलना
घर लौटने में
कभी लं..बी रा..त न करना।

याद रखना

आपकी बहन आप पर अटूट विश्वास कर आपका इंतजार कर रही है।

माय लव
स्लो एंड सेफ ड्राइव करना
समय पर घर आना
कहीं दूर न जाना
किसी गलत संगति में न पड़ना कभी झूठ न बोलना।
घर लौटने में
कभी लं..बी रा..त न करना ।
अपने जीवन के मूल्य को समझना।

याद रखना

आपकी पत्नी पलकें बिछाए आपका इंतजार कर रही है।

पापा
स्लो ऐंड सेफ ड्राइव करना
समय पर घर आना कहीं दूर न जाना
किसी गलत संगति में न पड़ना।
कभी झूठ न बोलना
घर लौटने में
कभी लं..बी रा..त न करना।
जीवन के मूल्य को समझना।

याद रखना

आपकी बेटी
बड़ी बेसब्री से आपका इंतजार कर रही है।

सार्थक जीवन

हम सब भी कितने अजीब हैं!
इस आस में जी रहे
कि
एक दिन अमीर होंगे ।
अच्छा भोजन
सैंकड़ों कपड़े
दो चार घर बनाएंगे,
अक्लमंद होने की सोच
गई तेल लेने।

दिल खाली और दिमाग हैं खचाखच भरे ।
डाक्टर की क्लिनिक चली ,
तो विज्ञान की नई बातें
गईं तेल लेने,
वकील का नाम हुआ
तो सच्चाई गई…..
एक नौकरी मिली
तो नई सीख गई तेल लेने।

अमीर कितने बोर!
सुविधाओं से उकताते,
अपने चेतन की
हत्या कर खोखला
जीवन जीते ।

गरीब कितने भूखे !
पांच किलो दाल_ चावल में
पीठ के बल
दुम हिलाते।
मॉब लिंचिंग होती
तो किकयाते।

वैचारिक रूप से खुद को उन्नत करना
हम छोड़ चुके।
खुशी की एक अंतिम तलाश में लगे।
और खुशी है
मृगतृष्णा
जो हाथ में आते ही छिटक जाती।

गाड़ी में रिफाइंड पेट्रोल
खाने में रिफाइंड तेल
पर
मस्तिष्क में रिफाइंड थॉट्स नहीं।
जबकि
विचारों को
महीन और महीन
करते रहने की
कोशिश ही
जीवन की सार्थकता है ।

जाने
हम सब कभी यह समझ पाएंगे!
या यूं ही जीवन निकाल कर मर जाएंगे!!

मौन साध्वी

मौन साध्वी
सब कुछ सुने
शब्द अपशब्द भी सुने
फिर भी
सुनकर भी कुछ न सुने
सिर्फ कानों पर कसकर
हाथ धरे।

मौन साध्वी
काम काज सब करे
सब की सुने
फिर भी
धीर धरे
मुंह से कुछ न कहे।

मौन साध्वी
सब गड़बड़ देखे
सब प्रपंच जाने
फिर भी
बस आंखें मूंदे
खुद को भीतर से देखे।

मौन साध्वी
धन दौलत से परे
शांत नीले गगन के तले
फिर भी
साधना में तपे ।

मौन साध्वी
लोगों से घिरी
प्रांगण में रहे
फिर भी
सांसारिक सुख से परे
जमीन में धंसे ।

मौन साध्वी
दिन के उजाले में रहे
रात के सन्नाटे में बैठे
फिर भी
मन में शांति की हिलोरें चलें।

मौन साध्वी
दैहिक सुखों को त्यागे
रागों से बैरागी होवे
फिर भी
असीम सुख में बसे।

लाइटें

एयरपोर्ट के नजदीक , जंगल घना।
जंगल में काला अंधेरा
अंधेरे को भगाने की, कोशिश करती
लाल ,पीले जुगनुओं की लाइटें।

एयरपोर्ट पर पसरा अंधेरा।
अंधेरे को भगाने की कोशिश करती
एयरपोर्ट पर जलती लाल,पीली,नीली लाइटें।

पहाड़ पर फैला अंधेरा।
अंधेरे को भगाने की , कोशिश करती,
घरों ,गलियों की जलती लाल,पीली,नीली,हरी,
सफेद,लाइटें।

समुंद्र पर दूर दूर तक, फैला अंधेरा।
अंधेरे को भगाने ,
की कोशिश करती,
शिप,क्रूज, बोट पे जलती
पीली, लाल,सफेद,नीली लाइटें।

आसमान में फैला अंधेरा।
अंधेरे को भगाने की, कोशिश करती,
एरोप्लेन इंजन और विंग्स पे जलती लाल ,पीली,नीली,
लाइटें।

प्लेन में घुप अंधेरा,
खराब मौसम से
प्लेन हिचकोलें खाता , स्थगित जल_पान सेवा ,
अंधेरे को भगाने की कोशिश करती,
प्लेन के अंदर ,
साइन बोर्डों पे जलतीं
पीली,सफेद,संतरी,लाल, हरी लाइटें।

प्लेन में बैठे ट्रेवलर्स के, मन में डर का अंधेरा,
प्लेन में इंस्ट्रक्शन देती एयर होस्टेस
हम खराब मौसम से गुजर रहे हैं।
कृपया सीट बेल्ट बांधे रखें,
शौचालय का उपयोग न करें,
जल_पान सेवा स्थगित।
अंधेरे को दूर करने की कोशिश करतीं,
ट्रेवलर्स के मस्तिष्क में
कौंधतीं,
लाल,पीली,नीली
लाइटें।

प्लेन में घुप्प अंधेरा
इमरजेंसी एग्जिट डोर ,
को दर्शाती प्लेन के, फ्लोर पर जलतीं
नीली, पीली, लाइटें।

ऐरो प्लेन के ऊपर,
बहुत ऊपर
चारों ओर फैला घना अंधेरा ,
अंधेरे को भगा ने की, कोशिश करती ,
चांद, सितारों की जलतीं
हल्की लाल,
पीली,सफेद लाइटें ।

महिला मोची

देखी एक महिला मोची। पूर्णा मार्केट की मेन रोड पर,
काम में अत्यधिक एकाग्र थी।

हो आत्मनिर्भर,
नहीं किसी को वह देखती,
नजर गढ़ाती सिर्फ जूते, सैंडल ,चप्पल पर,
तन मन से करती शू रिपेयरिंग।

दिखाती नहीं चेहरे पर कोई दुख,क्षोभ और ग्लानि,
बस हाथ में हथौड़ी ,कील,धागा और फेविकोल
बहुत करीने से जोड़ती जाती चप्पलें टूटी।

देती सर्विस फ्री शू पॉलिश की भी,
कस्टमर देते रुपए खुश होकर,
रखती रुपए बॉक्स में ऑनलाइन पेमेंट भी लेती।

देखी जेंडर इक्वलिटी की मिसाल महिला मोची, कस्टमर को देती सर्विस संतोषजनक से ऊपर,
करती काम अपना धारदार औजारों से परफेक्टली।

देखी एक महिला मोची। देखी एक महिला मोची।

प्यारी हिंदी

हमारे होठों पर प्यारी हिंदी।
दिमाग में
सोच में
घर में
ऑफिस में हिंदी।

पेपर पर हिंदी।
कंप्यूटर में
फाइलों में
मोबाइल में प्यारी हिंदी।

कहने ,समझने
की भाषा
मान – सम्मान,
आत्म सम्मान
दिलाती हिंदी।

पहचान हमारी हिंदी
मधुर स्मृतियों को स्मृति चिन्ह बनाती प्यारी हिंदी।

हिंद की बिंदी हिंदी।
तिरंगे से सजी
जय हिंद के घोष से गूंजी
प्रकृति पूजा से
बांसुरी बजा ती हिंदी ।

विभिन्न बोलियों,
भाषाओं,संस्कृतियों,
सभ्यताओं
को संजोती
हमारी प्यारी हिंदी।

शस्त्र ,शास्त्र क्रांति में बिफरी
देशभक्ति की मिसाल बनी
स्वतंत्रता आंदोलन की जान थी हिंदी।
आज भी आजादी को गढ़ती
राष्ट्रीयता की भावना से लिपटी प्यारी हिंदी।

देश को जोड़ती हिंदी
देश की स्थानीय भाषाओं की बनी कड़ी हिंदी।
चाची,ताई ,बुआ, भतीजी, मौसी,भांजी,बनीं गुजराती, मराठी कन्नड़ तेलुगू ,तमिल मलयाली आसामी
तो
दादी,नानी बनी प्यारी हिंदी।

रंग बिरंगी पोशाकों से सजी
प्यारे-प्यारे सुहाने सपनों से गुंथी।
हर सुर ताल में बजती गाजे ,बाजे, हर साज पर थिरकती हिंदी ।

जिंदगी की थकान कम करती
दिमाग का तनाव कम करती
हिंदवासियोँ की जिंदगी सहज सरल बनाती प्यारी हिंदी।

ज्ञान विज्ञान तकनीक में उभरी हिंदी
चैट जीपीटी,कंप्यूटर, ए.आई, रोबोट ,
बोले हिंदी।

मून मिशन पर प्रज्ञान रोवर से चांद पर पहुंची हिंदी।
विश्व में आदर भाव दिलाती हिंदी।
अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने को खुद में अनंत संभावनाएं समेटे
हमारी प्यारी हिंदी।

झूम के सावन आया

झूम के
सावन आया
जलराशि अपार लाया
नन्ही नन्ही बूंदे बरसाया
बारिश की फुहार लाया
तन मन में
ताजगी और खुशियों की बहार लाया।

झूम के
सावन आया
हर प्राणी की प्यास बुझाया
खुशनुमा वातावरण बनाया
घर आंगन
गली गली को तृप्ताया
सोंधी सोंधी खुशबू फैलाया
मिट्टी में
हरी हरी कोंपलें उगाया।

झूम के
सावन आया
हर प्राणी के मन भाया
उमंग तरंग से सबका दिल भरमाया
सबके मन में
प्रेम मनुहार पनपाया
जीवन के अंकुर फुटवाया।
झूम के
सावन आया। 2

उड़ी रे उड़ी हिंदी

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी ।
उत्तर भारत से राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार ,मुंबई से उड़ते उड़ते पहुंची दक्षिण भारत के कर्नाटक ,तेलंगाना और ठहरी जाकर विशाखापट्टनम।

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी ।
भारत, भूटान ,नेपाल बांग्लादेश, चीन ,
रशिया ,जापान से
उड़ती उड़ती पहुंची ,कंबोडिया, और जाकर ठहरी वियतनाम।

देखो।
उड़ी रे उड़ी हिंदी। अफगानिस्तान ,ईरान, इराक, ओमान ,कतर, कुवैत से उड़ती उड़ती
जाकर ठहरी दुबई
और सऊदी अरब।

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी।
फ्रांस ,इटली ,ग्रीस, डेनमार्क ,नीदरलैंड,जर्मनी से उड़ती उड़ती
जाकर ठहरी स्पेन
और स्वीडन।

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी। नाइजीरिया, अल्जीरिया, घाना,डीआर कांगो से
उड़ती उड़ती
जाकर ठहरी तंजानिया
और मॉरीशस।

देखो।
उड़ी रे उड़ी हिंदी।
कोयल की तरह कूकती
विभिन्न संस्कृतियों के पर लगाए
जाकर ठहरी पूरे ग्लोब पर
“विश्व कुटुम्बकम” बन
पूरे ग्लोब पर जगनुओं की तरह चमक रही हिंदी।

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी। 2

देशभक्त

मैं देशभक्त हूं
अटल हूं
अडिग हूं।

अदम्य साहस से भरा हूं
अंगद समान खड़ा हूं
मुश्किलों से लड़ने खड़ा हूं।

संघर्षों से भरा हूं
द्रढ़ प्रतिज्ञ खड़ा हूं
देश प्रेम में अंगार बन पड़ा हूं।

प्रचंड शक्ति से भरा हूं
झंडा ऊंचा लेकर खड़ा हूं
तिरंगे में लिपटने को तैयार खड़ा हूं।

मैं देशभक्त हूं
अटल हूं
अडिग हूं।

हिंद देश हमार

यह हिंद देश हमार
यहां माटी और हरियाली अपार।
यहां फूल ,पत्ते ,बेल और वृक्षों की भरमार,
असीम सुंदर दृश्य फैले चहुं ओर
यह हिंद देश हमार।

प्रथम जीवन का स्रोत
हमारी पहचान। स्वाभिमान ,आन – बान
और शान
यह हिंद देश हमार।

आसमानी ऊंचाइयों तक
फैला ऊंचा हिमालय
खड़ा हमार।
कुछ कर गुजरने का साहस
यहां एक दूसरे का उपकार ।
जीवन को बनाए साकार
यह हिंद देश हमार।

हमारे जीने का सहारा
गर्वित है मस्तक हमार ।
इस पर वारि जाए
जीवन हमार
यह हिंद देश हमार।

वक्ताओं की ताकत
हिंदी भाषा हमार।
लेखक का अभिमान
भाषाओं के शीर्ष पर
बैठी हिंदी हमार।
यह हिंद देश हमार। 2

Pay Back to Society

Pay back to society

When I was young.

Cow & buffalo gave me milk.

Hen gave me eggs.

Sheep gave me woolen.

Trees gave me fruits & vegetables.

Mummy gave me food & love
Daddy gave me dress & books.

Aunty & uncle gave me sweets & toys.

Teacher gave me education,.

Barbour cut my hair.

Shoemaker repaired my shoes .

Horse gave me strong ride.

Elephant gave me stable & beautiful ride.

Now
I am Healthy, wealthy , suited_ booted ,tip _top educated & established man.

&
Now
now
I will go to the buffalo & sheep to give them chara.(green grass.)

Now I will go to the hen to give them daana,(grain)

Now I will go to the shoemaker & barbour
To give them a huge shop(shade.)

Now I will go to field to watering the plants.

Now I will go to the teacher to give respect & gratitude.

Now I will go to aunty &uncle to give them
Sweets& sweet memories.

Now I will go to mummy & daddy to give them their all Happiness.

Now I will go to horse & elephant to give them reserved forest.

Now
I will
pay back to society.

मेरे देशवासियों

हे । मेरे देशवासियों चाहिए तुम्हें क्या?
मंदिर, मस्जिद, चर्च ,गुरुद्वारा और विहार ?
या
शांति ,चैन ,अमन खुशहाली ,और हरियाली?

हे । मेरे देशवासियों चाहिए तुम्हें क्या?
हिंदू मुस्लिम दंगे और जाति-पांति में लिपटे डंडे
या
रोजी रोटी और काम धंधे?

हे । मेरे देशवासियों चाहिए तुम्हें क्या?
बड़े-बड़े भाषण, आडंबर, हवन कुंड, असमानता ,विघटन और भीख
या
विज्ञान,विद्यालय, समानता ,एकता और हक?

हे । मेरे देशवासियों चाहिए तुम्हें क्या?
पूंजीवाद , राम राज्य, अन्याय , घृणा और गुलामी या
समाजवाद, लोकतंत्र ,न्याय,प्रेम और आजादी?

गर जिताना है तुम्हे
सही प्रत्याशी

सोचो
खूब सोचो

फिर e.v.m पर वार करो ।
बैलेट पेपर पर मतदान करो।
हे । मेरे देशवासियों सही अर्थों में लोकतंत्र तुम बहाल करो।

Creche Child

Parrot parrot
You are in cage.

Parrot parrot I am in creche.

You can eat seeds.
I can eat meal.

You are crying.
Putter putter.

I am crying louder & louder.

But nobody is listening to us.

Oh! aunty is not here.

Now you are free.
Now I am also free.

You can fly.
I can run.

You can go to your nest.
It’s open.

But
I can’t go to my Home.
It’s closed.
Oon..oon. ooon…

Dr. Suman Dharamvir

Dr. Suman Dharamvir

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