मैं हैरान हूं | Main Hairan Hoon
मैं हैरान हूं
( Main Hairan Hoon )
मैं हैरान हूं,
आखिर क्यों लोग?
मौत का जिम्मेदार,
बाबा को नहीं मान रहे ,
क्यों लोग मात्र ,
सेवादार और आयोजकों को, दोषी ठहरा रहे हैं।
आखिर कौन सा डर ,
बाबा को दोषी मानने से ,
रोक रहा है ।
कहीं बाबा श्राप न देदे ,
जिससे उनका परिवार,
नष्ट हो जाएगा।
क्यों लोग?
बाबा से नहीं ,
प्रशासन, सेवादार से ही नाराज हैं,
क्यों अपनों के खोने का गम भी, उनकी आस्था को,
डिगा नहीं पा रहा है ।
कहते हैं कि,
यदि किसी झूठ को ,
हजारों बार बोला जाएं तो,
वह सत्य होने लगता है ,
धर्म के साथ में ,
हजारों वर्षों से ,
जनता के मन में ,
धर्म गुरुओं द्वारा ,
स्वर्ग -नरक ,पाप -पुण्य का डर, बैठा हुआ है कि यदि ,
गुरु पर अविश्वास किया तो,
नरक भोगोगे ,
तुम्हें पाप लगेगा ,
आस्था पर उंगली उठाने पर ,
कीड़ों की तरह मरना होगा,
यही डर भय व्यक्ति को,
अपनों की लाश देखते हुए भी, शंका नहीं कर पा रहा है कि,
गुरु भी दोषी हो सकता है ,
वह मनुष्य है भगवान नहीं, आखिर क्यों लोगों को ,
यह सीधी सी बात ,
समझ में नहीं आ रही है ।
आखिर कब तक लोग,
जनता की आस्था से ,
यूं खेलते रहेंगे ।
आस्था कब तक,
जनता की जान लेती रहेंगी ,
कब तक मनुष्य को,
आस्था का भय दिखाकर,
उसकी जिंदगी के साथ ,
खेल खेला जाता रहेगा।
मैं हैरान हूं ,
मनुष्य के आस्था के साथ,
कब तक खिलवाड़ होता रहेगा, आखिर क्यों लोग ,
बाबा के चरण धूल ,
लेने के लिए ,
सड़कों पर दौड़ पड़े ,
क्यों अपनों के खोने के बाद भी,
उनकी आस्था डिग नहीं रही है,
क्यो लोग सड़कों पर उतर कर,
बाबा को दोषी नहीं ठहरा रहे।
गरीबों के साथ कब तक,
ऐसा मौत का नंगा नाच,
खेला जाता रहेगा।
गरीबों के जान की कीमत ,
कब तक पैसों से,
तौला जाता रहेगा ।
क्या लाख 2 लाख देकर,
किसी का जीवन,
लौटाया जा सकता है ।
कुंभ महाकुंभ समागम में,
आखिर गरीबों की ही भीड़ ,
क्यों जुटती है ?
लाखों की भीड़ जुटाना से,
जनता को क्या लाभ होगा?
उनके जनधन को,
क्यों पानी की तरह ,
बहाया जा रहा है ।
आखिर कब तक,
गरीबों के भीड़ जुटाकर,
कीड़े मकोड़े की तरह,
मारा जाता रहेगा ।
कोई क्यों बाबा कह देता है कि,
उसके चरणों की धूल रखने से,
कष्ट मिट जाएंगे,
ऐसी बातों को,
सत्य मान कर ,
चरणों की धूल पाने के लिए,
अपनी जान गवाते रहेंगे ।
आखिर यह विश्वास ,
जनता के मन में ,
कौन भरता है ?
क्यों लोग ऐसी बातों में ?
विश्वास कर लेते हैं ।
क्यों? इस वैज्ञानिक युग में भी ,
धार्मिक अंधविश्वास में फंसकर,
अपनी जान लोग गवा रहे हैं ।
क्यों लोग ?
महंगाई -बेरोजगारी ,
दुख पीड़ा का कारण ,
सरकार की नीतियों को ,
नहीं मानते हैं।
क्यों मंदिर मस्जिद दरगाह में ,
दुख को मिटाने जाते हैं ।
गरीबों की गरीबी का कारण,
सरकारों की गलत नीतियां हैं ।
क्यो लोग कभी?
सरकारों से प्रश्न नहीं पूछते ?
क्यों गरीबी भुखमरी ,
भाग्य में लिखा मानकर ,
सहन कर जाते हैं ।
आखिर सैकड़ो वर्षों से,
गरीबों के गरीबी ,
क्यों नहीं मिट रही हैं।
कौन है जो ?
गरीब का हिस्सा खा रहा है।
क्यों सरकार?
ऐसी नीतियां बनाती है ,
जिसमें अमीर और अमीर होते जा रहे हैं,
गरीब नून रोटी को तरस रहे हैं,
कहीं गरीबी भुखमरी तो नहीं,
बाबाओं के सत्संग में ,
भीड़ बढ़ा रही है।
क्यों चरण धूल से ही ,
भुखमरी लोग मिटाना चाहते हैं।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )