
हसीन सपने
( Haseen sapne )
बैठे थे हम महफिल में, हसीनो के बीच,
बालों को रंगवा कर।
और हरकत थी कुछ
ऐसे जैसे 60 में से 40 घटा कर।
महफिल भी जवां और दिल भी जवां।
मन में सावन ऐसे झूम रहा था,
जैसे आवारा, बादल चूम रहा था।
हमने भी, हमने भी, हसीना की जुल्फें लहराने चाही,
हमने भी हसीना की जुल्फें लहरानी चाही।
बेवक्त
तुरंत 40 में 20 जोड़कर घुटने कहराने लगे।
फिर क्या था जनाब,
रंगीन मौसम बुढ़ापे में तब्दील हो गया और
हसीन सपना चूर-चूर हो गया।
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लेखिका :- गीता पति (प्रिया)
( दिल्ली )
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