इस ह़िमाक़त में क्या है | Ghazal Is Himaqat Mein Kya Hai
इस ह़िमाक़त में क्या है
( Is Himaqat Mein Kya Hai )
बताओ तुम्हीं इस ह़िमाक़त में क्या है।
किसी की क़बाह़त,इहानत में क्या है।
क़रीब उनके बैठो तो आए समझ में।
बुज़ुर्गाने दीं की हिदायत में क्या है।
झुकाकर तो देखो कभी अपने सर को।
समझ जाओगे ख़ुद इ़बादत में क्या है।
वो ज़ालिम है उसको पता क्या है इसका।
सदाक़त,सख़ावत,शराफ़त,में क्या है।
क़दम घर से निकला तो हमने यह जाना।
सिवा मुश्किलों के मसाफ़त में क्या है।
जो बे जान हैं वो न समझेंगे इस को।
मिरी जां तुम्हारी इताअ़त में क्या है।
जो दिल की निगाहों से देखो तो जानो।
ह़सीनों की नाज़-ओ-नज़ाकत में क्या है।
फ़राज़ आप तो ख़ूब वाक़िफ़ हैं इससे।
बता दो हमें भी मुह़ब्बत में क्या है।
पीपलसानवी