सुलग रही है | Kavita Sulag Rahi Hai
सुलग रही है
( Sulag Rahi Hai )
सुलग रही है मातृभूमि के ,सीने पर चिंगारी ।
आज उऋण होने की कर लें ,हम पूरी तैयारी ।।
जगह जगह बारूद बिछी है ,जगह जगह हैं शोले
ग़द्दारों को थमा दिये हैं,दुश्मन ने हथगोले
लूटपाट क्या ख़ून खराबा, सब इनसे करवा कर
भरता है वो अभिलाषा के ,अपनी निशिदिन झोले
ग़ौरी से जयचन्दों की अब ,पनप न पाये यारी ।।
सुलग रही है——
सिंहनाद कर उठें शत्रु को,नाको चने चबा दें
इसकी करनी का फल इसके,माथे पर लटका दें
छोड़ समर को भाग पड़ेंगे, यह बुज़दिल ग़द्दार
इनके मंसूबों की होली, मिलकर चलो जलादें
क्षमा नहीं अब कर पायेंगे,हम इनकी मक्कारी ।।
सुलग रही है———
वीर शिवा,राणा प्रताप सा, हम पौरुष दिखलाते
नाम हमारा सुनकर विषधर,बिल में ही घुस जाते
गर्वित है इतिहास हमारा, हम हैं वो सेनानी
कभी निहत्थे ,निर्दोषों पर ,उंगली नहीं उठाते
हमने रण में करी नहीं है, कभी कोई मक्कारी ।।
सुलग रही है———-
घूम रही है भेष बदलकर ,ग़द्दारों की टोली
खेल रहे हैं यह धरती पर,नित्य लहू से होली
अब सौगंध उठा इनकी ,औक़ात बता देते हैं
निर्दोषों पर चला रहे जो ,घात लगा कर गोली
इनकी करतूतो से लज्जित है इनकी महतारी ।।
सुलग रही है ———
उठो साथियों आज तनिक भी, देर न होने पाये
अब भारत के किसी क्षेत्र पर,कभी आँच न आये
आने वाली पीढ़ी वरना, कैसे क्षमा करेगी
कहीं किसी बैरी का साग़र शीश न बचकर जाये
बहुत खा चुकी अब केसर की, क्यारी को बमबारी ।।
सुलग रही है मातृभूमि के ,सीने पर चिंगारी ।
आज उऋण होने की कर लें ,हम पूरी तैयारी
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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