रहते हैं ज़मीरों को | Ghazal Rahte Hain
रहते हैं ज़मीरों को
( Rahte Hain Zameeron ko )
रहते हैं ज़मीरों को यहाँ बेचने वाले
दुश्मन ने यही सोच के कुछ जाल हैं डाले
बेटे ही जहाँ माँ का गला नोच रहे हों
उस घर की मुसीबत को तो भगवान ही टाले
दुश्मन है इसी बात पे हैरान अभी तक
हम से कभी हारे नहीं भारत के जियाले
दुश्मन तू छुपे चोरी लगाता है निशाना
मैदान में जब चाहे जिसे हमसे लड़ा ले
हर बार नतीजे में तुझे हार मिली है
देते हैं गवाही ये जहां भर के रिसाले
आहट से हमारी ही दहल जाते हैं दुश्मन
जांबाज़ हमेशा से हैं भारत के निराले
दीवाना समझते हैं तो समझे हमें सागर
हम ढूँढने निकले हैं अंधेरों में उजाले
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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