नया भारत | Kavita Naya Bharat
नया भारत
( Naya Bharat )
पतझड़ का पदार्पण हुआ है
हर ओर एक दुःख छाया है
उजड़ गया जो उपवन उसे फिर
बारिश से हमें खिलाना है
अमावस की स्याह रात है
एक-दूसरे के हम साथ है
अंधियारा मिटाने के लिये
मिलकर दीप जलाना है
मझधार में फंसी है नाव हमारी
फिर भी हिम्मत की डोर कसे हुए
इस जीवन की कश्ती को
साहिल पर पार लगाना है
वक्त जो गुजर गया
या जो आने वाला है
ये न सोचे उसका रंग
सफेद या काला है
कल भी भोर होगी
कल फिर मन मुस्कुराएगा
कल फिर चिड़िया चहकेंगी
कल फिर हवा मंहकेगी
कल फिर सावन आयेगा
कल फिर मौसम बदलेगा
कल फिर हरियाली आएगी
कल फिर फूल खिलेंगे
कल फिर हम सब मिलेंगे
कल की उम्मीद से
मन का कलश सजाना है।।
डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल, मप्र