मायड़ की ममता | Maayad ki Mamta
जीवन के रंग
जीवन के रंग अनेक
कुछ बद कुछ नेक
कोई काला कोई गोरा
कोई लाल कोई कोरा
रंग बरंगी फूल खिले
चमन में पीले नीले
तिलली चहके बड़ी मस्त
कली खिली मद मस्त
बुलबुल बहक महक उठी
चिड़िया चुलबुली चहक उठी
त़ोत़ा मीना की कहानी
लेलां मजनू की ज़ुबगनी
राधा कृष्ण का प्रेम
मीरा कृष्ण का प्रेम
प्रेम भाव पावन पवित्र
शुद्ध मन भावन चरित्र
पुरूष प्रकृति का मेल
रज वीर्य का खेल
जेसी दृष्टि वेसी सृष्टि
जेसा बीज वेसी सृष्टि
कागा कोयल रंग एक
भिन्न भाषा अलग विवेक
इंसाफ़
आज कल इंसाफ़ धर्म के नाम होने लगा
आज कल न्याय जाति के नाम होने लगा
सच्च झूठ की परख नहीं फ़र्क़ नहीं फेर
आज कल रिश्ता राजनीति के नाम होने लगा
परिवार की पूछ ताछ नहीं मोबाईल सब कुछ
आज कल याराना दोलत के नाम होने लगा
फ़ेसबुक इंस्टाग्राम पर सगाई होती रंग रूप देख
आज कल ब्याह चैट के नाम होने लगा
दुल्हन दोड़ आती जाती सीमा पार सज धज
आज कल परिवार इंटरनेट के नाम होने लगा
धर्म मज़हब जाति बंधन नहीं भेद भाव ‘कागा’
आज कल समाज बराबरी के नाम होने लगा
इस्तेमाल
आपका इस्तेमाल हो रहा है सियास्त में
आपका उपयोग हो रहा है हिरास्त में
जाहल पागल हो तुम एकदम अनाड़ी अबोझ
आपका दुर्पयोग हो रहा है विरासत में
हाथ जोड़ दोनों मांगते बन भिखारी वोट
आपका उभोग हो रहा है शराफ़त में
पांच साल तक पेहचान नहीं रहते गुमनाम
आपका वियोग हो रहा है अदालत में
काम काज होता नहीं रोज़ मरह का
आपका प्रयोग हो रहा है शरारत में
तारा तोड़ लाने का करते वादा ‘कागा’
आपका उधोग हो रहा है इमारत में
नारी का सम्मान
कर नारी का सम्मान नारी नर की खान
कभी नहीं करना अपमान नारी नर की खान
मां की कोख से उत्पन्न हुआ होगा तुम
मां बेटे की जान नारी नर की खान
बहिन होगी चुलबुली चिड़िया गुड़िया प्यारी दुलारी लाडली
पराई का करते अपमान नारी नर की खान
बेटी कलेजे का टुकड़ा धड़कन दिल की धारा
बुरी नज़र नहीं जान नारी नर की खान
करते छेड़ ख़ानी गली कोचे चोराहे पर जबरन
करता बलात्कार लानत इंसान नारी नर की खान
दहेज वास्ते करता दमन दरिंदा बन हत्या ‘कागा’
सबको अपनी बहिन मान नारी नर की खान
देश भाग्य विधाता
हम दास देश के देश भाग्य विधाता
हम भक्त देश के देश हमारा दाता
बोलो वंदे मातरम चाहे ख़ुशी चाहे ग़म
देश दिल की धड़कन देश हमारी दम
जब तक जान जिस्म में ज़िंदा दिल
देश भाग्य विधाता दाता हम ज़िंदा दिल
आन बान शान जान क़ुर्बान मुल्क पर
ईमान अरमान बलिदान कर देंगे मुल्क पर
आंच नहीं आने पाये वत़न पर कोई
बुरी नज़र लगे नहीं दुश्मन की कोई
इज़्जत आबरू सांसों से प्यारा हमारा वत़न
ह़िफ़ाज़त करेंगे हर लिह़ाज़ से मुकमल जतन
धन दोलत शान शोक्त शहोरत मुल्क हमारा
वत़न हमारी आत्मा देश प्राण से प्यारा
तिरंगा आज़ादी का ऊंचा लेहराये छूकर आकाश
गायें गीत गुनगुना गूंजे नील गगन आकाश
‘कागा’ पंद्रह अगस्त को करें याद शहीद
ग़ुलामी से आजादी दिलाई करें याद शहीद
बेटी बोझ नहीं
बेटी बोझ नहीं बेटी सिर का ताज
बेटी मां बाप के सिर का ताज
बेटी तितली कली फूल की कोमल सुंदर
बेटी चेहकती चिड़िया गुड़िया सू़रत मूर्त सुंदर
बेटी अनमोल मोती मोर मुक्ट जेसी मोहक
बेटी को बोझ मत मानो मन मोहक
बेटी का वासा उस घर में लक्ष्मी
पूजन करो प्रेम से भंडार भरे लक्ष्मी
बेटी दो कुल का कल्याण करे भरपूर
मायके ससुराल का चिंतन करे भाग्य भरपूर
बेटी मां बहिन बहु का नाता निभाये
बेटी बूआ सास का रिश्ता नाता निभाये
बेटी घर आंगन की रंगोली भोली भाली
बेटी पूजा अर्चना आराधना आरती की थाली
‘कागा’ बेटी कलेजे की कूंपल पंखुड़ी प्यारी
बेटी का बखान कितना करूं महिमा न्यारी
राष्ट्र भक्ति
हम राष्ट्र भक्त हम अंध भक्त नहीं
हम वत़न प्रस्त हम अंध भक्त नहीं
हम उपेक्षा के शिकार बने बार-बार
भेद भाव छूआ छूत में तार-तार
धर्म देश ईमान नहीं छोड़ा हम बुलंद
लालच में अरमान नहीं तोड़ा हम बुलंद
ज़मीर अपना बेचा नहीं सहा ज़ुल्म सितम
बेघर बन रहना क़बूल सहा ज़ुल्म सितम
बहिन बेटियां ब्याही नहीं किसी ग़ैर को
अस्मत क़ायम रखी सौंपी नहीं ग़ैर को
रूखी सूखी बासी जूठन खाई भीख मांग
कभी सिर झुकाया नहीं अपनी सीमा लांघ
इंसान की गरिमा बनाये रखी मर्यादा में
मुख़बर ग़द्दार नही बने रहे मर्यादा में
वफ़ादार ईमानदार मुल्क के पीढ़ी दर पीढ़ी
ग़रीबी में जीवन गुज़ारा पीढ़ी दर पीढ़ी
कलंक का काला दाग़ नही लगने दिया
भूख प्यास मरना मंज़ूर नहींं लगने दिया
शिक्षा दीक्षा से दूर रखा परवाह नहीं
मंदिर पूजा पाठ से परहेज़ परवाह नहीं
‘कागा’ मुल्क पर आंच आने नहीं देंगे
जान की बाज़ी लगा आने नहीं देंगे
जाग राही
जाग राह के राही चल मंज़िल की ओर
जाग क़ौम के सिपाही चल मंज़िल की ओर
हर बंदा बेदार है मंज़िल ह़ास़िल करने को
ढूंढ रहा हम राही चल मंज़िल की और
दुश्मन खड़ा दरवाज़े पर राह की रुकावट रहज़न
तुला है करने तबाही चल मंज़िल की ओर
कौन अपना कौन पराया जान पेहचान कर प्यारे
बिना स़बूत देगा गवाही चल मंज़िल की कर
करवट बदल दल दल छल कपट झूठ झांसा
उठ लेकर अब अंगड़ाई चल मंज़िल की ओर
कारवां चला गया लशकर लड़ाई करने वाले लोग
अब रह गयी तन्हाई चल मंज़िल की ओर
रास्ता बड़ा मुश्किल है ऊबड़ खाबड़ डगर मगर
साथ रखना अपनी सुराही चल मंज़िल की ओर
चाक चौबंद होकर चलना खेल नहीं आसान यार
नहीं चलेगी ज़रा लापरवाही चल मंज़िल की ओर
ह़िस़ाब किताब लेखा जोखा सही सलामत रखना ‘कागा’
संग कापी क़लम स्याही चल मंज़िल की ओर
सच्चाई
सच्चाई सुनने को तैयार नहीं लोग
झूठ पसंद करते तैयार नही लोग
झूठ हज़म हो जाता जल्द मगर
सच्च से प्यार नहीं करते लोग
सच्च से प्यार नहींं आज कल
झूठ को पसंद करते गुमराह लोग
झूठ ज़िंदगी का ह़िस्स़ा हो गया
हर बात में बोलते झूठ लोग
डांट फटकार की परवाह नहीं ज़रा
कूंए में पड़ी भांग पीते लोग
ज़मीर औंघ गया सांप सौंघ गया
सच्च सुनते नहीं झूठ बोलते लोग
केसा दौर केसा ज़माना आया ‘कागा’
क़दम दर क़दम फरेब करते लोग
चले जाना
रोते आये जहान में रोते छोड़ चले जायेंगे
सोते आये संसार में सोते छोड़ चले जायेंगे
दुनिया में जीना दो दिन का आख़र जाना
बंद मुठ्ठी आये हम ख़ाली हाथ चले जायेंगे
दुनिया बड़ी दीवानी मस्तानी अजब ग़ज़ब खेल तमाशा
नंगा बदन आये हम नंगा तन चले जायेंगे
जन्म पर नहा नही सके मरने पर माज़ूर
उधार सांसे लाये हम सांसें छोड़ चले जायेंगे
हम रोये अपने हंसे बांटा गुड़ बजाई थाली
पैदल आये पराये कंधों सवार होकर चले जायेंगे
ख़ुशी ग़म का लुत़्फ़ लिया जग में जमकर
एक झौंके में उड़ते छू मंत्र हो जायेंगे
नहीं कोई ठोर ठिकाना नहीं मंज़िल का पता
अकेले आये हम अकेले जहान छोड़ चले जायेंगे
दो गज़ ज़मीन कफ़न कपड़े वास्ते कमाया धन
मेरा तेरा मत कर बंदा सब छोड़ जायेंगे
बिना पंख पंखेरू हर किसी के जिस्म में
पंख फड़फड़ा कर फुर्र होकर उड़ चले जायेंगे
मुखाग्नि देंगे अपने ज़रा भी तरस नहीं ‘कागा’
दफ़न करना जलाना करेंगे अपने हम चले जायेंगे
दीमक
दीमक लग चुकी धूल हटाओ हर रोज़
आईना धुंधला हुआ धूल हटाओ हर रोज़
दुश्मन देहरी लांघ घुस चुका घरों में
ग़ैर को भगाओ ध्यान रखो हर रोज़
नीयत में खोट है जान पेहचान नहीं
घुसपेठ हो चुकी सावधान रहो हर रोज़
बिना मांगे लाता जबरन जूठन खुरचन खाना
टर्रा पव्वा पूरी ख़बरदार रहो हर रोज़
सहयोग सहायता के बहाने ईमान के सोदागर
बेजमीर बना रहे सतर्क रहो हर रोज़
फूट डाल चुके कर चीर फाड़ ‘कागा’
ह़क़ हड़प रहे मज़बूत रहो हर रोज़
आज़ाद पंछी
वो जलते आह वाह हम चलते रहे
हमें मिली राह वो हाथ मलते रहे
ह़सद की आग में जल बने राख
हमें मिली हिम्मत वो हाथ मसलते रहे
पिट्ठुओं से पूछा नहीं चले हम अकेले
हमें मिली मोह़ब्बत वो मूर्ख मचलते रहे
हम सफ़र मिल गया राह चलते चलते
हमें मिली स़ोह़ब्बत वो ऊंचे उछलते रहे
ग़ुरूर था ग़ज़ब का रुक थक गये
हमें मिली जन्नत वो ज़हर उगलते रहे
रहबर मिल गया हमें अपना मन पसंद
हमें मिली इज़्जत वो बलते उबलते रहे
कम सामान सफ़र आसान एक गठरी गूदड़ी
हमें मिली उल्फ़त वो उल्टे उलझते रहे
त़ौर त़रीक़ा तकरार का क़दम दर क़दम
हमें मिली ह़िफ़ाज़त वो रंग बदलते रहे
नफ़रत की आग फेलाने वाले नादान नाकाम
हमें मिली केफ़ियत वो बेबस बिदकते रहे
बंद पिंजरे के त़ोत़े रटते राग ‘कागा’
हमें मिली इजाज़त वो बेवजह बकते रहे
रोशन
वत़न का नाम रोशन करना है चलना सीखो
मुल्क का नाम रोशन करना है जलना सीखो
राही बन जाओ राह का मंज़िल की ओर
क़ौम का नाम रोशन करना है बदलना सीखो
दीपक बन जलना होगा बिना बाती बिना तेल
जाति का नाम रोशन करना है बलना सीखो
गुलाब का गुल बनने की ह़स़रत दिल में
ख़ानदान का नाम रोशन करना है महकना सीखो
कांटा बन रहना होगा नुकीला संग फूलों के
ख़ुद का नाम रोशन करना है बहकना सीखो
नर्म सख़्त मिज़ाज एक सिक्के के दो पेहलू
चमन का नाम रोशन करना है चहकना सीखो
अगर सूरज बन रोशन करनी कायनात को ‘कागा’
कायनात का नाम रोशन करना है ढलना सीखो
नर नादान
वो नर नादान जो करे नारी की निंदा
वो नर बेईमान जो करे नारी की निंदा
नो माह़ तक अपनी कोख में पाला पोसा उसको
बोझ उठाया मां ने जान से प्यारा रखा उसको
जब हुआ जन्म सुन किलकारी बजाई थाली ख़ुशी में
बधाई मिली बांटा गुड़ मिठाई पुत्र की ख़ुशी में
बोल बोलना नहीं आता मां ने सिखाया हर शब्द
अब ज्ञानी बन बेठा विद्वान नारी को कहता अपशब्द
ढोल ढोर शूद्र नारी को कहता ताड़न के अधिकारी
नारी नर जननी भगनी संगनी सदेव सम्मान की अधिकारी
नारी लक्ष्मी सरस्वती ऋद्धि सिद्धि ममता क्षमता की मूर्त
नारी वंश वृद्धि की बेल संसार समता की मूर्त
नर नारी का मेल मिटा दे घोर अंधेरा छाया
नर सूरज चांद नारी रोशनी चांदनी कामनी काया माया
ब्रह्मा विष्णु शिव बिना नारी नहीं उत्पत्ति सृष्टि रचना
सरस्वती लक्ष्मी पार्वती बिना नहीं जग में कोई संरचना
‘कागा’ माता बहिन अद्धांगनी का करो आदर सत्कार स्नेह
जीवन सफल हो जायेगा जग करो आदर सत्कार स्नेह
सुखी इंसान
रोटी कपड़ा ओर मकान
लंगोटी छपरा ओर दुकान
मिल जाये समय पर
वो होता सुखी इंसान
नहीं लफड़ा लोभ लालच
नहीं मोह सुखी इंसान
भूख प्यास बुझाने को
अन्न जल सुखी इंसान
सिर छिपाने को छपरा
छाया मिले सुखी इंसान
तन ढकने को कपड़ा
हाथों काम सुखी इंसान
संस्कार युक्त संग संगनी
प्रेम पावन सुखी इंसान
श्रम की कमाई शुद्ध
सोच बुद्ध सुखी इंसान
बंद मुठ्ठी आया अकेला
नंगा बदन सुखी इंसान
खुला हाथ चले जाना
बेबस बंदा सुखी इंसान
दो गज़ ज़मीन कफ़न
दफ़न वास्ते सुखी इंसान
अपना नहीं कोई ‘कागा’
अकेला जाना सुखी इंसान
ज़़मीर
चमक देख चुग़लों की चित्त डग मग हो गया
दमक देख दोगलों की मन जग मग हो गया
चमचों की पौ बारहा रहते हरदम चिकने चुपड़े चुस्त
बिचोलियों की बले बले शाम ढले दिलो दिमाग़ दुरस्त
दाल गलती देखी दलालों की चाल चलती चापलूसों की
शराब कबाब शबाब में लाजवाब बेहतरी चौकीदार चापलूसों की
गधे खाते देखे गुलाब जामुन घोड़ों को नहीं घास
सांप बंद कर दिये टोकरी में सपेरों को विश्वास
नाग पंचमी को पिलाते दूध भर कटोरा कर पूजा
वरना करते वार देख जाये घर में लाठी पूजा
‘कागा’ देख रंग बदरंग दुनिया का ज़मीर नहीं बेचना
उतार चढ़ाव आते रहेंगे जीवन में ज़मीर नहीं बेचना
मां की ममता
मां की ममता का चमकता सितारा बेटा
मां के आंचल में दमकता सितारा बेटा
मां की आंखों का तारा पलक पावड़ा
मां के कलेजे का टुकड़ा प्यारा बेटा
दिल की धड़कन आंखों की फड़कन होता
नन्हा मुन्हा जवान जोशीला जज़्बाती सहारा बेटा
दिल से दूर नहीं आस पास बसता
मिल जुल मुस्काये ख़ुशियों का पिटारा बेटा
मां बेटे जेसा कोई पवित्र रिश्ता नहीं
दिल को सुकून देता हरदम दुलारा बेटा
श्रवण की सेवा मां बाप की अनूठी
हर मां की इच्छा मिले मतवारा बेटा
मां का जीवन बेटे पर क़ुर्बान ‘कागा’
उगता सूरज मां का लाड़ला सवेरा बेटा
प्रशंसा
कब तक करते रहोगे पराई प्रशंसा
कब तक करते रहोगे पराई अनुशंसा
परिजन से प्यार कर हर रोज़
कब तक करोगे पराया भरोसा
ग़ैर की गोद में बेग़ैरत बने
कब तक रहोगे फंदे में फंसा
अपनों की करते बढ़ चढ़ बुराई
कब तक करते रहोगे पराई सुरक्षा
जी ह़ुज़ूरी बन खड़े हो ख़ुदारा
आज़ाद होने की नहीं है मंशा
पराया घर रोशन करने को उतावले
अपनों को क्यों देते झूठा झांसा
जिस जाति कुल में जन्म लिया
वो क्या रखें आप में आशा
ओरों से बोलते मीठे बोल मधुर
अपनों से कब बोलोगे मीठी भाषा
अपेक्षा उपेक्षा में बदल गई ‘कागा’
कब तक देखें हम दोगला तमाशा
बलात्कार
हर रोज़ होता बहिन बटियों का बलात्कार
हर रोज़ होता बहिन बेटियों से दुराचार
हृदय हांफता कलेजा कांपता सुन घिनोनी घटनाऐं
हर रोज़ होता बहिन बेटियों पर अत्याचार
चीख़ चीत्कार चिलाना सुनता नहीं कोई कसाई
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का दुर्व्यवहार
गलियारों चौराहों सरे आम होती छेड़-ख़ानी
हर रोज़ होता बहिन बूटीयों पर तकरार
दहेज के लोभी भेड़िये मांगते धन दोलत
हर रोज़ होती बहिन बेटियां बलि हज़ार
ह़वस़ का शिकार होती बदनसी़ब दीन हीन
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का बंटाधार
रिश्ते नाते कलंकित देखे कलयुग में ‘कागा’
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का तिरस्कार
बंटवारा
बंटवारा कर बंटाधार कर दिया इंसान का
इंसान ने नुक़स़ान कर दिया इंसान का
प्रकृति के नियम क़ानून तोड़े इंसान ने
धर्म को बांटा भागों में इंसान ने
वर्ण व्यवस्था लागू की ऊ़च नीच की
जाति को छिन्न भिन्न ऊंच नीच की
इंसान ने हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बनाये
पूजा पाठ के अलग प्रथा नियम बनाये
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे भगवान के घर
मूर्ती काबा क्रास समाधी स्थल दरगाह दर
‘कागा’ नाम राम रहीम अल्लाह गाड वाहगुरु
इबादत में अलह़दगी बंदगी नमाज़ सत गुरु
नारी
नारी नर पर भारी नारी नर जननी
नारी भगनी नारी मां ममता नारी संगनी
बिना नारी जग सूना नारी आंगन उजाला
नारी नर की खान नारी ज्योति ज्वाला
नारी लक्ष्मी सरस्वती सावित्री करती सिंह सवारी
नारी माता सीता पार्वती ऋद्धि सिद्धि बलिहारी
नारी प्रथ्वी अग्नि नारी चमकती बिजली बन
मारी जाती कोख में कन्या भ्रुण बन
चित्ता चढ़ती सत्ती प्रथा के बहाने जलती
देहेज की बलि दानवों के हाथ जलती
दरिंदों की दासी होती काम वासना शिकार
मानव बनता दानव उत्पन्न होते पशु विकार
‘कागा’ नारी वंश वृद्धि की बेलड़ी सुंदर
करो नारी का सम्मान मन चित्त सुंदर
कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा
पूर्व विधायक
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