ग़म-ए-इ़श्क़

ग़म-ए-इ़श्क़ | Gham-e-Ishq

ग़म-ए-इ़श्क़

( Gham-e-Ishq )

पहले पत्थर सा कलेजे को बनाया होगा।
तब कहीं उसने ग़म-ए-इ़श्क़ छुपाया होगा।

ख़ूब कोहराम हर इक सम्त मचाया होगा।
जब ह़सीं रुख़ से नक़ाब उसने हटाया होगा।

याद जब मेरी उसे भूल से आयी होगी।
आबे-चश्म-उसने बहुत देर बहाया होगा।

सांस तारों की भी थम सी गई होगी वल्लाह।
चांदनी शब में वो जिस वक़्त नहाया होगा।

अ़क्स जब उसका पड़ा होगा बदन पर उसके।
फूल ने बढ़ के उसे दिल से लगाया होगा।

हिचकियाँ बन्द हुईं जब से,यही सोचूं हूं।
किस तरह उसने मुझे दिल से भुलाया होगा।

ज़िन्दगी जिसको फ़राज़ अपनी समझते थे हम।
क्या ख़बर थी के वही शख़्स पराया होगा।

सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़

पीपलसानवी

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