राजनीति व्यंग्य
राजनीति व्यंग्य
इंड़ी फेल हुआ है तो क्या
जनता में विश्वास जगाएँ
चलो नया दल एक बनाएँ
राजनीति के मकड़जाल जाल सी
अधरों पर मुस्कान लिये
मफ़लर स्वैटर टोपी चप्पल
कंगालों सी शान लिये
लोगों के काँधे चढ़ जाएँ
किस को याद रहा है कब-कब
किस ने किस-किस को लूटा
कब फ़िर धोती चप्पल वाला
पहन लिया सूटा-बूटा
जनमानस को फ़िर उलझाएँ
गुमनामी में बीता जीवन
अब आकर्षक चहल-पहल
रस्ते थे छोटी कुटिया में
घुस बैठे अब शीशमहल
हम भी कोई जुगत भिड़ाएँ
बीत चुका है आधा जीवन
क्यों लेटें टूटी खटिया
भरी जवानी के मेले में
भटक रहे बारह बटिया
अब भटकन को दूर भगाएँ
एक बार गर जीत गए तो
पैसा आएगा अंधा
धेली नहीं दुअन्नी लगती
इस से अच्छा क्या धंधा
आओ ये व्यापार उगाएँ
चलो नया दल एक बनाएँ
देशपाल सिंह राघव ‘वाचाल’
गुरुग्राम महानगर
हरियाणा
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