दुख भरे दिन बीते रे भैया
दुख भरे दिन बीते रे भैया

दुख भरे दिन बीते रे भैया

( Dukh bhare din beete re bhaiya )

 

पुराणों के अनुसार छिपकली को लक्ष्मी का रूप माना गया है। कल लेटे हुए मैं अपनी निकृष्ट जिंदगी पर विचार कर रहा था। अभी मैं  निष्कर्षों में पहुंचा ही था कि लक्ष्मी जी सीधा मेरी नाक पर आकर गिरीं। अहोभाग्य!!! अब तो हमारे भाग्य खुल गए।
दरअसल दीवार पर 2 लक्ष्मी जी आपस मे किसी बात को लेकर झगड़ पड़ी थीं। किन कारणों से वो झगड़ी ये तो मैं न जान सका। लेकिन यह जरूर जान गया कि दुनिया में एक बात कॉमन है ताकतवर हमेशा कमजोर पर भारी पड़ता ही है।
मोटी छिपकली जो कि पतली और छोटी छिपकली से लगभग दोगुनी आकार,वजन की थी इस बात से नाराज हो गयी थी क्योंकि कुपोषित छिपकली उसके “क्षेत्र” में आ गयी थी।
यह उसे गंवारा न हुआ और “आश्रम” वेब शो की माफिक जैसे दलित दूल्हे का “बड़े मोहल्ले” वालों द्वारा शादी में घोड़ी चढ़ना बर्दाश्त नही हुआ ठीक वैसे ही मोटी छिपकली को भी यह हजम न हुआ कि एक कुपोषित छिपकली उसकी एरिया में बिना उसकी अनुमति और बिना डरे विचरण कर रही है।
ठीक “आश्रम”की तरह मोटी छिपकली ने छुटकी पर हमला बोल दिया। हमला अचानक था बेचारी छुटकी जब तक कुछ समझ पाती उसका बैलेंस बिगड़ गया। वह निरीह प्राणी सीधा मेरी नाक पर आकर गिरी।
कंकड़/मिट्टी की कल्पना करते हुए मैंने ध्यान न दिया परन्तु जैसे ही आंखे खोली छिपकली को नाक से उछलकर दीवार पर चढ़ते देखा। पहले तो मैं डरा लेकिन बाद में यह सोचते हुए कि छिपकली नही साक्षात लक्ष्मी जी मेरी नाक पर आकर गिरी हैं, मैं सन्तुष्ट हुआ।
ऐसा सबके साथ हर रोज थोड़ी न होता है !! लक्ष्मी जी की कृपा मुझ पर बरसने वाली है। अब मुझे एक लॉकर खरीद लेना चाहिए।
एक चीज मैंने और गौर की। मोटी और हष्टपुष्ट छिपकली गौरवर्ण थी जबकि कुपोषित छिपकली सांवले रंग की। वैसे तो मैं वर्णभेद के खिलाफ हूँ परन्तु यह देखना आश्चर्यजनक था कि रंगभेद इन रेंगने वाले जंतुओं में भी विद्यमान है।
अगर छोटी छिपकली गौर वर्ण की होती क्या तब भी बड़ी गौर वर्ण छिपकली उसे मारने के लिए झपटती और अपने एरिया से खदेड़ती ??
हो सकता है वह मेरी वजह से ही झगड़ पड़ी हों। कौन मेरी नाक पर आकर गिरेगा इसका सीधा सम्बंध मेरे भाग्य खुलने से है। बड़ी छिपकली गिरती तो बड़ी लक्ष्मी जी का आगमन होता, नोट सिर्फ 500 और 2000 के रूप में ही आते।
जबकि छोटी छिपकली के गिरने से मैं संशकित हूँ।मैं यूनिसेफ वालों से भी बेहद नाराज हूँ।यह कुपोषित छिपकली यदि यूनिसेफ द्वारा पोषण पा जाती तो मेरी लॉटरी लग जाती।अब तो चिल्लर से ही संतोष करना पड़ेगा।
यूनिसेफ का कार्य- क्षेत्र इंसानों के अलावा अन्य जीव जंतुओं के लिए क्यों नही है??यूनिसेफ को अपना दायरा बढ़ाना चाहिए।चाहे इंसानी बच्चा हो या फिर चमगादड़, छिपकली अथवा घोंघे का; भेदभाव न करते हुए हर कुपोषित जीव का ख्याल रखा जाना चाहिए।
कुपोषित होना जितना बड़ा गुनाह है उससे भी बड़ा गुनाह किसी कुपोषित छिपकली का आदमी पर गिर जाना है..आदमी के तो भाग्य फूट जाते हैं।
इंसान न जाने कितनी उम्मीदें लगाए जीता है कि किसी दिन कोई मोटी छिपकली उस पर आकर गिरेगी और उसकी फूटी किस्मत की खेती फिर से लहलहा उठेगी लेकिन हाय रे दुर्भाग्य!!!

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