आध्यात्मिक गुरु का इंटरव्यू
( Adhyatmik guru ka interview )
गुरू ने मेकअप करने में 2 घंटे लगा दिये वे जब फ्रेम में आये तो उन्होने नेत्र अर्द्धनिमीलित कर लिये। मंत्रीजी और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों को उन्होने नीचे आसीत कर दिया। जब पूरा दृश्य प्रभावोत्पादक हो गया तो उन्होने साक्षात्कार लेने के लिए इशारा कर दिया।
पहले तो कैमरामेन ने आश्रम के बाहर की दृश्यावली और श्रद्धावनत भीड़ का फिल्मांकन किया कैमरा देख कर भीड़ किंचित अधिक ही श्रद्धायुक्त हो गई । अन्दर के पवित्र चिन्ह्नो, श्रद्धालु मंत्रियों और प्रशासनिक अधिकारियों से होता हुआ कैमरा गुरू पर स्थिर हो गया फिर संवाददाता ने वहीं मूर्खतापूर्ण प्रश्न उछाल दिया।
“ भगवान आपको गुरू बनकर कैसा लग रहा है“ ?
गुरू ने प्रश्न लपक लिया और उदासीनता का अभिनय करते हुए कहा “मैंनें संसार त्याग दिया है” कैमरा उनके गले के बहुमूल्य हार और अंगुठियों पर से होता हुआ मूर्ख विदेशी चेलियो पर चिपक गया।
संवाददाता “भगवान आपके गुरू (घंटाल) बनने से देश को कैसा लग रहा है ?
गुरू: भारत शुरू से आध्यात्मिक गुरू रहा है। जब पश्चिमी लोगो का वस्त्रों से परिचय भी नही था (अब भी कम ही है) तब हमारे यहाॅ पुष्पक विमान था, अग्नि बाण थे, चरक और सुश्रुत थे इन्द्र और उर्वशी थे ब्रम्हा विष्णु और महेश थंे ।
तभी मंत्री जी ने टोक दिया वे बोले आध्यात्म हमारे देश का सबसे बड़ा कुटीर उद्योग है हम आध्यात्म एक्सपोर्ट करते है और प्रतिवर्ष 3 हजार करोड़ डालर का आयात करते है इस व्यापार में न तो कोई धातु या खदान की जरूरत है और ना ही अन्य राॅ मटेरियल की।
कैमरे से गुरूजी की अप्रसन्नता नहीं छुपी । पर वे मंत्रीजी को नाराज नही कर सकते थे अन्यथा हडपी हुई जमीन और संपत्ति का हाथ से खिसकने का डर था।
संवाददाता पूरी तैयारी के साथ आया था । उसने आखरी में दागा जाने वाला प्रश्न बीच में दाग दिया उसने पूछा “महागुरू वो कल्याणी देवी वाला लफड़ा उछलने से आपको कैसा लग रहा है” ?
गुरूजी असहाय हो गये मगर संभलकर बोले “प्रेम, प्रेम ही ईश्वर है ईश्वर ही प्रेम है अतः प्रेम करो।”
माया महाठगिन हम जानी। “एक शिष्य भड़क गया बोला सब दुशमन की चाले है एक कोंचिंग क्लास वाला दूसरे कोचिंग क्लास के स्टूडेन्ट को खीचनें के लिए कई घटिया हथंकंडे अपनाता है। वही उन्होने किया जिस कल्याणी का जिक्र वो करते है उसे गुरूजी जानते तक नही ंहमारे आश्रम में ही आप देख लीजिए, लगभग डेढ़ सौ कल्याणियांॅ मौजूद है।”
मंत्री जी आज ज्यादा ही लीक कर रहे थे । टपके “सब सी आई की चाल है हमारी विरोधी पार्टी हमें बदनाम कर रही है इसमें कोई विदेशी षडयंत्र है जो हमें कमजोर बनाना चाहता है।”
इस बीच कैमरा बीच बीच में भीड़ में आर्कषक देह यष्टियों के पास जाता रहा फिर लौटता रहा । अध्यात्म के बीच में श्रृंगार और सुंदर लगने लगता है ।
गुरूजी का योग सत्र प्रारम्भ होने को था अतः कैमरा योग सीखने लगा गुरूजी आसन को योग कहते थे । बीच बीच में वह कोकाकोला और कोलगेट को कोसते जाते थे उन्हें लौकी बचपन मे ज्यादा ही खिलाई गई थी ।
अतः लौकी की सब्जी और लौकी का रस शिष्यों को ढूंसते जाते थे। वे कभी एलोपैथी को कोसते तो कभी स्त्रियों को। अन्त में वे उनकी फैक्ट्री में बनने वाली किताबे, अगरबत्तियाॅ, चूरन, चटनी, फैनसुई, मालाएॅ इत्यादि बेचने लगे।
कैमरा फिर प्रश्नवाचक हो गया उसने पूछा (महा) गुरू. आप क्या क्या जानते है और आपको कैसा लगता है ?
भगवान बोले, “मैं चमत्कार दिखा सकता हूँ, वेदान्त पर बोल सकता हूँ, जन्म पत्री देख सकता हूँ, सट्टे के नंबर बतला सकता हूँ, मूर्तियों को दूध पिला सकता हूँ, टेरो जानता हूँ, तंत्र जानता हूँ, पामिस्ट्रि जानता हूँ, कथावाचक हूँ, भजन गा सकता हूँ, आय नो ऑलमोस्ट आल द एस्पेक्टस ऑफ़ आकल्ट साइंस।
संवाददाता प्रभावित होता दिखा उसने हाथ जोड़कर कहा “ कृपा कर एक भजन सुना दें गुरू ने पूछा “कौन से रस का भजन ?
श्रंृगार रस का भजन, शांत रस का भजन वीर रस का भजन, वात्सल्य रस का भजन, वीभत्स रस का भजन, या रौद्र रस का ?
लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)