Geet by Dr. Alka Arora | यादें यूँ भी पुरानी चली आई
यादें यूँ भी पुरानी चली आई
( Yaaden Yoon Bhi Purani Chali Aai )
मन की बाते बताये तुम्हें क्या
है ये पहली मुहब्बत हमारी
भले दिन थे वो गुजरे जमाने
मीठी मीठी सी अग्न लगाई
हम तो डरते हैं नजदीक आके
जान ले लो – ऐ जान हमारी
कब से बैठे दबाये लबो को
कब से यारी है गम से हमारी
चढगयी सर आसमाँ तक
ये नशीली रात खुमारी
बजते घुघरू से आवाज आई
देखो कैसी चली पुरवाई
खाली लौटे हैं तेरे जहाँ से
तुने कैसी ये लहरे जगाई
मुस्कुराते हो क्यूं ,कहो तो
जैसे ठण्डी चले पुरवाई
दिल में करती हैं हलचल हमेशा
जैसे पहली नजर की जुदाई
आग पानी में अब तो लगी है
नजरे नजरों से जब भी मिलाई
आकर बैठे सुकून से यहाँ हम
जैसे खुद की ही बगिया जलाई
तारे खोने लगे रौशनी सब
धरती चंदा से मिलने आई
बाँध लो हमको अपनी ख़िजा में
खोल दो ये पायल हमारी
आँखे देने लगी आज धोखा
यादे यूँ भी पुरानी चली आई
लेखिका : डॉ अलका अरोडा
प्रोफेसर – देहरादून